हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: 13 अप्रैल: 2025,
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों पर समयसीमा में निर्णय देना होगा
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि राष्ट्रपति को किसी भी विधेयक पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि तय समयसीमा में फैसला नहीं लिया गया, तो वाजिब कारण बताना अनिवार्य होगा। यह फैसला राज्यपालों पर भी लागू होगा, जिससे वे अब किसी विधेयक को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकेंगे।
राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर की नाराजगी: ‘यह न्यायपालिका का अतिक्रमण है’
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर केरल के राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा,
“अगर संविधान संशोधन का काम भी सुप्रीम कोर्ट करेगा तो फिर संसद और विधानसभाएं किस लिए हैं?”
“अगर सब कुछ माननीय अदालतों द्वारा तय किया जाता है, तो संसद की जरूरत खत्म हो जाती है। यह न्यायपालिका का अतिक्रमण है।”
राज्यपाल का कहना है कि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट को बड़ी बेंच के पास भेजना चाहिए था, न कि केवल खंडपीठ द्वारा निर्णय लेना उचित था।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: कांग्रेस और सीपीआईएम ने राज्यपाल की आलोचना की
राज्यपाल के इस बयान पर राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है।
सीपीआईएम के वरिष्ठ नेता एमए बेबी ने कहा,
“जब राष्ट्रपति किसी विधेयक को लंबित नहीं रख सकते तो फिर राज्यपाल को यह अधिकार कैसे मिल सकता है? राज्यपाल का सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करना गलत है।”
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने इसे ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया और कहा,
“राज्यपाल सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि अब भाजपा का एजेंडा उजागर हो जाएगा।”
न्यायपालिका बनाम कार्यपालिका: टकराव की स्थिति?
राज्यपाल के बयान ने एक बार फिर न्यायपालिका और कार्यपालिका के संबंधों पर बहस छेड़ दी है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला विधायिका और कार्यपालिका की जवाबदेही को सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है। वहीं, राज्यपाल की प्रतिक्रिया से यह सवाल उठता है कि क्या यह संवैधानिक संतुलन को चुनौती देने वाला बयान है?