हिन्दुस्तान मिरर न्यूज, 12-7-2025
बलरामपुर जिले से सामने आई एक चौंकाने वाली खबर ने सुरक्षा एजेंसियों और समाज को झकझोर कर रख दिया है। यहां गरीब, विधवा और भावनात्मक रूप से असुरक्षित हिंदू युवतियों को प्रेमजाल में फंसाकर मतांतरण कराने का संगठित और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैला षड्यंत्र उजागर हुआ है। इस साजिश का मास्टरमाइंड जलालुद्दीन उर्फ छांगुर है, जो पहले नग बेचने वाला एक मामूली व्यक्ति था, लेकिन अब करोड़ों की विदेशी फंडिंग से संचालित नेटवर्क का प्रमुख चेहरा बनकर सामने आया है।
छांगुर का नेटवर्क केवल बलरामपुर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उसने नेपाल सीमा से सटे जिलों में मदरसों और मजहबी संस्थानों के जरिये अपना नेटवर्क फैला दिया। जांच में खुलासा हुआ है कि छांगुर ने शिक्षा की आड़ में कई मदरसे बनवाए, जो विदेशी फंडिंग से संचालित हो रहे थे। स्थानीय लोगों के अनुसार, वह शुक्रवार को छोड़कर बाकी दिनों में विभिन्न क्षेत्रों में घूमता रहता था और बहराइच, श्रावस्ती व नेपाल में उसका आना-जाना अधिक था।
छांगुर और उसके साथियों द्वारा कोडवर्ड का प्रयोग किया जाता था, जैसे ‘मिट्टी पलटना’ यानी धर्म परिवर्तन, लड़कियों को ‘प्रोजेक्ट’ कहना, ‘काजल करना’ मतलब मानसिक रूप से प्रभावित करना, और ‘दर्शन’ से तात्पर्य छांगुर से मिलवाना। लड़कियों को बहकाने के लिए मुस्लिम युवकों को पैसे दिए जाते थे और हर धर्म की लड़की के लिए एक निश्चित धनराशि तय थी। इसके लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया जाता था, जहां युवक फर्जी हिंदू नामों से फर्जी प्रोफाइल बनाकर संपर्क साधते और शादी का झांसा देकर उन्हें मतांतरण के लिए राजी करते।
इस गिरोह का संचालन इतने संगठित तरीके से किया जा रहा था कि ATS को अब तक सौ करोड़ से अधिक की विदेशी फंडिंग और 40 से अधिक बैंक खातों की जानकारी प्राप्त हुई है। ये सभी खाते छांगुर, नीतू उर्फ नसरीन और नवीन उर्फ जमालुद्दीन जैसे लोगों से जुड़े हैं, लेकिन पूरा पैसा इन्हीं के नाम पर नहीं है। इसके अलावा, छांगुर ने खुद स्वीकार किया है कि उसने एक पूर्व आईपीएस अधिकारी से नियमित मुलाकात की थी, जिससे उसके नेटवर्क की पहुंच और गहराई का अंदाजा लगाया जा सकता है।
ATS की टीम ने बलरामपुर के मधपुर में छांगुर के ठिकाने पर छापा मारकर कई सबूत जुटाए हैं। नीतू, नवीन और महबूब जैसे कई सहयोगियों के खिलाफ भी कार्रवाई तेज कर दी गई है। साथ ही, मदरसा शिक्षकों, मौलवियों और प्रॉपर्टी डीलरों समेत 20 अन्य लोगों की सूची भी तैयार की गई है, जो इस नेटवर्क में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे।
इस मामले ने न केवल सुरक्षा व्यवस्था की गंभीरता को उजागर किया है, बल्कि यह भी साबित कर दिया है कि मतांतरण अब केवल व्यक्तिगत आस्था का विषय नहीं रहा, बल्कि एक सुव्यवस्थित, अंतरराष्ट्रीय और राजनीतिक मंशा से प्रेरित षड्यंत्र बन चुका है। एजेंसियों की चुप्पी और सुस्ती पर भी सवाल उठने लगे हैं कि कैसे वर्षों तक इतना बड़ा नेटवर्क फलता-फूलता रहा।
अब ज़रूरत है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष और गहराई से जांच कर साजिश के हर तार को उजागर किया जाए और दोषियों को कड़ी सजा दी जाए, ताकि समाज में विश्वास और सुरक्षा की भावना बनी रहे।