हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: 20 अप्रैल: 2025,
नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत होते ही एक बार फिर देश के विभिन्न हिस्सों में प्राइवेट स्कूलों द्वारा की गई फीस वृद्धि को लेकर अभिभावकों का गुस्सा फूट पड़ा है। कई जगहों पर अभिभावकों ने प्रदर्शन किया, तो कई ने मंत्री और प्रशासनिक अधिकारियों से हस्तक्षेप की मांग की। यह सिलसिला हर साल दोहराया जाता है, लेकिन मुख्य सवाल अब भी बना हुआ है — क्या प्राइवेट स्कूल मनमर्जी से फीस बढ़ा सकते हैं?
क्या प्राइवेट स्कूलों को फीस बढ़ाने का पूरा अधिकार है?
असल में, प्राइवेट स्कूलों को अपने संचालन की लागत, स्टाफ की सैलरी, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवेलपमेंट और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए फीस बढ़ाने का अधिकार जरूर है, लेकिन यह अधिकार पूरी तरह से अनियंत्रित नहीं है। हर राज्य में इसके लिए अलग-अलग रेगुलेशन तय किए गए हैं ताकि अभिभावकों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ न पड़े।
उत्तर प्रदेश: 9.9% से ज्यादा नहीं बढ़ा सकते फीस
उत्तर प्रदेश सरकार ने फीस बढ़ोतरी के लिए स्पष्ट सीमा तय कर रखी है। राज्य में कोई भी स्कूल सालाना 9.9% से अधिक फीस नहीं बढ़ा सकता। इसमें 5% सीधी बढ़ोतरी और शेष उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित होती है।
बिहार: अधिकतम 7% की सीमा तय
बिहार में फीस वृद्धि की सीमा केवल 7% तक तय की गई है। इस पर पटना हाईकोर्ट की भी मुहर है, जिसने इस नियम को संवैधानिक मान्यता दी है। इसका उद्देश्य फीस बढ़ोतरी को नियंत्रित कर आम जनता को राहत देना है।
दिल्ली: अधिकांश स्कूलों को नहीं लेनी पड़ती अनुमति
दिल्ली में स्थित कुल 1677 प्राइवेट स्कूलों में से केवल 335 स्कूल ही ऐसे हैं, जिन्हें फीस बढ़ाने से पहले शिक्षा निदेशालय (DoE) से अनुमति लेनी होती है। ये वे स्कूल हैं जो सरकारी जमीन पर बने हैं और DSEAR, 1973 के तहत संचालित होते हैं। बाकी करीब 80% स्कूल बिना किसी निगरानी के फीस बढ़ा सकते हैं।
हरियाणा: CPI + 5% से अधिक नहीं बढ़ा सकते फीस
हरियाणा सरकार ने भी फीस वृद्धि पर सख्त नियम बनाए हैं। यहां स्कूल CPI (महंगाई दर) में अधिकतम 5% जोड़कर ही फीस बढ़ा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, अगर महंगाई दर 3% है, तो स्कूल अधिकतम 8% तक ही फीस बढ़ा सकते हैं।
अभिभावकों के पास क्या हैं अधिकार?
फीस वृद्धि से परेशान अभिभावकों के पास भी कई विकल्प हैं। वे PTA (पेरेंट-टीचर एसोसिएशन) के माध्यम से स्कूल प्रशासन से जवाब मांग सकते हैं, विरोध दर्ज करा सकते हैं और आवश्यकता पड़ने पर कोर्ट का भी सहारा ले सकते हैं। कई राज्यों में इसके लिए उपभोक्ता मंच और शिक्षा शिकायत प्राधिकरण भी मौजूद हैं।
रेगुलेशन हैं, लेकिन निगरानी जरूरी
फीस बढ़ोतरी को लेकर राज्यों ने अपने-अपने तरीके से नियम तो बनाए हैं, लेकिन असली चुनौती इन नियमों के क्रियान्वयन और निगरानी की है। जब तक सभी स्कूलों पर समान रूप से निगरानी नहीं रखी जाएगी, तब तक अभिभावकों की नाराजगी और परेशानियां बनी रहेंगी।