हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
झारखंड के एक छोटे से गांव में फातिमा बी (नाम बदला) की कहानी उस बड़े खतरे का आईना है जो ग्रामीण भारत में डिजिटल बढ़ोतरी के साथ उभर रहा है। तीन साल पहले एक शख्स सरकारी अधिकारी बनकर उनके घर आया और “सब्सिडी” के नाम पर उनसे अंगूठा मशीन पर दबाने को कहा। फातिमा ने शक न करते हुए आठ बार अंगूठा दबाया — और बाद में पता चला कि उनके खाते से लगभग 24,000 रुपये आठ ट्रांजैक्शनों में निकाले जा चुके हैं।
सरकारी आंकड़े और विशेषज्ञ यह बताते हैं कि यह अकेली घटना नहीं है। आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक 2021 और 2024 के बीच साइबर अपराधों में 1,146 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज हुई। 2022 में देश में कुल 17,470 साइबर अपराध दर्ज किए गए, जिनमें से 6,491 मामले ऑनलाइन बैंक धोखाधड़ी के थे। गृह मंत्रालय के साइबर अपराध समन्वय केंद्र के अनुसार रिपोर्ट किए गए मामलों में साइबर अपराधियों ने 12,000 करोड़ रुपये से अधिक ठगी की — जिनमें डिजिटल अरेस्ट से जुड़े मामलों में 2,140 करोड़ रुपये भी शामिल बताए गए हैं। हालांकि विशेषज्ञ वास्तविक संख्या को और अधिक मानते हैं, क्योंकि कई पीड़ित पुलिस तक शिकायत ही नहीं पहुंचाते।
डिजिटल एम्पावरमेंट फाउंडेशन के संस्थापक ओसामा मंजर कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में स्मार्टफोन का उपयोग बढ़ने और सरकारी सेवाओं के लिए डिजिटल वेरिफिकेशन अनिवार्य होने से लोग धोखाधड़ी के आसान निशाने बन रहे हैं। इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक 2023 में ग्रामीण भारत में इंटरनेट यूजर्स 48.8 करोड़ से अधिक पहुंच गए — जो देश के कुल यूजर्स का 55% है — और यही बढ़ती पहुँच धोखाधड़ी के स्तर को भी बढ़ा रही है।
केरल की साइबर अपराध विशेषज्ञ धन्या मेनन ने बताया कि अपराधी अक्सर सरकारी योजनाओं या कर्ज के लिए आवेदन करने वालों को टार्गेट करते हैं। उनके अनुसार ग्रामीण पीड़ितों के लिए छोटी-सी ठगी भी जीवनभर की बचत के बराबर हो सकती है, क्योंकि हाल के वर्षों में ग्रामीण मजदूरी घटने और कर्ज बढ़ने की स्थितियाँ और भी कमजोर स्थिति पैदा कर रही हैं। भटको गांव के मुखिया सुकेश्वर सिंह कहते हैं कि उन्हें हर हफ्ते साइबर ठगों के कम से कम एक कॉल मिलते हैं — मुफ्त कृषि उपकरण, मोबाइल टावर या सुविधाओं के लालच के बहाने कई बार ठगी की कोशिश होती है।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि डिजिटल साक्षरता को मजबूती से फैलाया जाए, बायोमेट्रिक डिवाइसों के इस्तेमाल में सावधानी बरती जाए और सरकारी अथवा बैंकिंग प्रक्रियाओं में तृतीय-पक्ष सत्यापन और जागरूकता अभियान तेज किए जाएँ। वरना, बढ़ती कनेक्टिविटी ग्रामीणों की आर्थिक सुरक्षा के लिए नया खतरा ही साबित होगी।













