हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़ ✑ शनिवार 7 जून 2025 अलीगढ़
वॉशिंगटन/इस्लामाबाद। पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी के अमेरिका दौरे को उस वक्त झटका लगा, जब अमेरिकी सांसद ब्रैड शेरमैन ने उनकी मौजूदगी में पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की दो-टूक सलाह दी। वॉशिंगटन में एक कार्यक्रम के दौरान अमेरिकी कांग्रेस सदस्य शेरमैन ने विशेष रूप से जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों पर कार्रवाई की मांग की। उन्होंने कहा कि इस संगठन का नाम 2002 में पत्रकार डैनियल पर्ल की हत्या से भी जुड़ा है, जो उनके निर्वाचन क्षेत्र से थे।
ब्रैड शेरमैन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, “मैंने पाकिस्तान के प्रतिनिधिमंडल से कहा कि आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कदम उठाना बेहद जरूरी है, खासकर जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों के खिलाफ।” उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को चाहिए कि वह ऐसे संगठनों को पूरी तरह खत्म करने के लिए ठोस और पारदर्शी कदम उठाए।
शेरमैन ने पाकिस्तान में रह रहे ईसाई, हिंदू और अहमदी समुदायों के धार्मिक अधिकारों की बात भी उठाई। उन्होंने कहा कि इन समुदायों को बिना किसी भय और भेदभाव के लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
डॉ. शकील अफरीदी की रिहाई की मांग
ब्रैड शेरमैन ने पाकिस्तान सरकार से डॉक्टर शकील अफरीदी की तत्काल रिहाई की भी मांग की। अफरीदी ने ओसामा बिन लादेन को पकड़वाने में CIA की मदद की थी और उन्हें पाकिस्तान में 33 साल की सजा सुनाई गई थी। शेरमैन ने कहा, “डॉ. अफरीदी की रिहाई 9/11 पीड़ितों को एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी।”
बिलावल भुट्टो ने उठाया कश्मीर मुद्दा, नहीं मिला समर्थन
बिलावल भुट्टो ने अपने दौरे के दौरान न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस और सुरक्षा परिषद के राजदूतों से मुलाकात की और कश्मीर मुद्दे को उठाने की कोशिश की। हालांकि वॉशिंगटन में उन्हें इस पर समर्थन नहीं मिला। इसके उलट, अमेरिकी अधिकारियों ने पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की सलाह दी।
उसी समय भारत की ओर से शशि थरूर के नेतृत्व में एक संसदीय डेलिगेशन पहले से ही वॉशिंगटन में मौजूद था, जो हालिया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत की आतंकवाद के खिलाफ रणनीति को अमेरिका के सामने रख रहा था।
बिलावल भुट्टो का यह दौरा पाकिस्तान के लिए कूटनीतिक रूप से सहज नहीं रहा। अमेरिका में न केवल उनके प्रयासों को समर्थन नहीं मिला, बल्कि पाकिस्तान की आतंकी संगठनों के खिलाफ नर्म नीति पर सवाल भी उठे। ब्रैड शेरमैन जैसे प्रभावशाली सांसदों की स्पष्ट आलोचना ने यह संकेत दे दिया कि अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को कठोर रुख का सामना करना पड़ सकता है।