हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: 1 मई : 2025,
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम मामले की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया कि विवाह या परिवार में होने वाले झगड़े अपराध के लिए उकसाने के समान नहीं होते। न्यायमूर्ति रविन्द्र डुडेजा ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में केवल उत्पीड़न नहीं, बल्कि सक्रिय उकसावे की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही कोर्ट ने एक महिला और उसके बेटे को गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान करते हुए उन्हें अग्रिम जमानत दी है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि आत्महत्या के मामलों में यह देखना आवश्यक है कि आरोपी का आचरण क्या था, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि किसी सामान्य व्यक्ति को आत्महत्या के लिए प्रेरित किया गया था या नहीं।
महिला और बेटे को दी अग्रिम जमानत:
कोर्ट ने महिला और उसके बेटे को अग्रिम जमानत देते हुए यह टिप्पणी की, क्योंकि वे महिला के पति को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में मुकदमा का सामना कर रहे हैं। यह व्यक्ति पिछले साल 30 अप्रैल को मृत पाया गया था। आरोपियों के वकील ने दावा किया कि पीड़ित मानसिक रूप से कमजोर था और विभिन्न अस्पतालों में उसका इलाज चल रहा था। साथ ही यह आरोप भी लगाया कि पीड़ित अपनी पत्नी को अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता था और इसके दौरान उसके बेटों ने भी इस मामले में गवाही दी कि वे बार-बार यौन शोषण के गवाह बने थे।
यह निर्णय कानून और न्याय के प्रति एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण को दर्शाता है, जिसमें केवल मानसिक उत्पीड़न को उकसाने के समान नहीं माना गया, बल्कि इस मामले में और भी गहरे विचार किए गए।