हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:14 जुलाई 2025
नई दिल्ली, 14 जुलाई 2025:
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक अहम याचिका दायर की गई है, जिसमें पार्टी की राजनीतिक मान्यता रद्द करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता तिरूपति नरसिम्हा मुरारी ने आरोप लगाया है कि AIMIM भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना का उल्लंघन करती है और केवल एक विशेष समुदाय—मुस्लिमों—के हितों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कार्य करती है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने पहले की थी याचिका खारिज
इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने 16 जनवरी 2025 को यही याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट के निर्णय को अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जिसकी सुनवाई मंगलवार को निर्धारित है।
याचिका में क्या कहा गया है?
वकील विष्णु जैन द्वारा दाखिल इस याचिका में चुनाव आयोग द्वारा AIMIM को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत दी गई मान्यता को अवैध बताया गया है। याचिकाकर्ता के अनुसार, AIMIM अपने आधिकारिक दस्तावेजों में निम्नलिखित उद्देश्यों को प्रमुखता देती है:
- इस्लामी शिक्षा को बढ़ावा देना
- शरीयत कानूनों के प्रति प्रतिबद्धता
- मुस्लिम समुदाय के आंतरिक संप्रदायों को प्रतिनिधित्व देना
- मुस्लिम समुदाय के रोजगार, शिक्षा और आर्थिक कल्याण को प्राथमिकता
इन बिंदुओं को आधार बनाकर याचिकाकर्ता ने AIMIM को “सांप्रदायिक पार्टी” करार दिया है और कहा कि यह भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के विरुद्ध है।
संवैधानिक और कानूनी पहलू
याचिका में यह भी सवाल उठाया गया है कि क्या किसी राजनीतिक दल का पंजीकरण हाईकोर्ट की धारा 226 के अंतर्गत रद्द किया जा सकता है। साथ ही, यह भी पूछा गया है कि क्या AIMIM की गतिविधियाँ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 2 का उल्लंघन करती हैं।
सुप्रीम कोर्ट की पुरानी टिप्पणी
सात जजों की संविधान पीठ ने 2017 में एक निर्णय में कहा था कि धर्म, नस्ल, जाति, संप्रदाय या भाषा के आधार पर मतदाताओं से अपील करना “भ्रष्ट आचरण” की श्रेणी में आता है।
यह मामला न केवल AIMIM की मान्यता को प्रभावित कर सकता है, बल्कि भविष्य में उन सभी राजनीतिक दलों के लिए नजीर बन सकता है, जो संप्रदाय या जाति विशेष के आधार पर राजनीति करते हैं। अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या रुख अपनाता है।