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तमिलनाडु केस: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की मंजूरी के बिना विधेयकों को माना पारित, जानें क्या है इसका संवैधानिक मतलब

हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: 19 अप्रैल: 2025,

तमिलनाडु में राजभवन बनाम सचिवालय की टकराहट

तमिलनाडु में हाल ही में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव ने एक नया मोड़ ले लिया है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब राज्यपाल की मंजूरी के बिना कुछ विधेयकों को पास मान लिया गया और वे कानून बन गए। इस ऐतिहासिक फैसले ने भारतीय संघीय व्यवस्था और संवैधानिक प्रक्रिया को लेकर बड़ी बहस छेड़ दी है।

क्या था मामला?

तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी कि राज्यपाल आर.एन. रवि कई विधेयकों को लंबे समय से मंजूरी के बिना लंबित रखे हुए हैं। अदालत ने इस पर संज्ञान लेते हुए कहा कि राज्यपाल को कोई भी विधेयक अनिश्चितकाल तक रोककर नहीं रखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विधेयकों पर निर्णय लेने की एक समय-सीमा होनी चाहिए।

अदालत का ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ लंबित विधेयकों को पारित मान लिया, बल्कि यह भी निर्देश दिया कि यदि कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजा जाता है, तो राष्ट्रपति को भी उस पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। इस फैसले के तहत राष्ट्रपति की भूमिका पर भी टिप्पणी हुई, जिस पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने प्रतिक्रिया दी कि “अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दे सकतीं।”

राज्यपाल की भूमिका क्या है?

संविधान के अनुच्छेद 153 के अनुसार, प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होता है, जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है और राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को अंतिम मंजूरी देने की जिम्मेदारी उसी की होती है।

राज्यपाल के पास निम्न विकल्प होते हैं:

  • विधेयक पर हस्ताक्षर कर उसे कानून बनाना
  • विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानसभा को लौटाना
  • विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजना

हालांकि, यदि कोई विधेयक दोबारा विधानसभा में पारित होकर आता है, तो राज्यपाल को उस पर हस्ताक्षर करना होता है।

कानून कैसे बनता है राज्य में?

  1. विधेयक विधानसभा में पारित होता है।
  2. विधेयक राज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजा जाता है।
  3. राज्यपाल मंजूरी देते हैं, तो विधेयक कानून बन जाता है।
  4. अगर मंजूरी नहीं दी गई, तो राज्यपाल उसे वापस भी लौटा सकते हैं या राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।

क्या बिना राज्यपाल के अनुमति के कानून बन सकता है?

सैद्धांतिक रूप से नहीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते। यदि राज्यपाल तय समय में निर्णय नहीं लेते, तो माना जाएगा कि उन्होंने मौन स्वीकृति दे दी है। यही वजह है कि तमिलनाडु में बिना राज्यपाल की अनुमति के ही विधेयकों को पारित माना गया।

इस फैसले के दूरगामी प्रभाव

  • संविधान की व्याख्या में नया अध्याय
  • राज्यपाल की शक्ति पर पुनर्विचार की आवश्यकता
  • राज्य सरकारों को अधिक संवैधानिक स्वतंत्रता
  • केंद्र और राज्य के संबंधों में संतुलन की जरूरत

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