हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:5 जुलाई 2025
- सीपी सिंह, लखनऊ
इंतहा हो गई इंतज़ार की….। ये लाइन प्रदेश भाजपा के नए अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर सटीक बैठ रही है। तारीख पर तारीख देने के बाद भी अभी तक बीजेपी अपना प्रदेश अध्यक्ष नहीं चुन पाई है। साथ ही आपसी रस्साकसी के चलते प्रदेश के 28 जिलाध्यक्ष भी अभी तक नियुक्त नहीं हो पाए हैं। इसे लेकर जहां भाजपाइयों में अंदर खाने सुगबुगाहट है, वहीं विपक्ष भी भाजपा जैसी अनुशासित पार्टी पर अध्यक्ष का चुनाव नहीं करने को लेकर गाहे-बगाहे कमेंट पास कर देता है । हालांकि अभी तक हुई कवायदों से तो इतना तय है कि नया प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी या दलित वर्ग से हो सकता है । इसके लिए दर्जन भर से अधिक नामों पर विचार हो रहा है। उधर प्रदेश की सियासत के बदलते हालातों के चलते भाजपा को जल्द ही अध्यक्ष तय करना जरूरी हो गया है।
भाजपा सदस्य संख्या के हिसाब से देश ही नहीं विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है। मौजूदा समय में केंद्र और प्रदेश में भी भाजपा की सरकार हैं। ऐसे में भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष पद “हाट केक” की मानिंद हो गया है। इसके लिए दावेदारों की कतार हर रोज़ लंबी होती जा रही है। वैसे तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का कार्यकाल वर्ष 2023 में ही खत्म हो चुका है। लेकिन लोकसभा 2024 के चुनाव के चलते इसे आगे को टाल दिया गया था। जिस समय अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ाया गया, उस समय भाजपा खुद को काफी मजबूत मान रही थी। हालात ये थे कि केंद्र ने जहां 400 पर का नारा दे रखा था, वहीं प्रदेश में कद्दावर नेता भी 70 से अधिक लोकसभा की सीटों पर परचम फहराने का दावा कर रही थे। लेकिन जैसे ही लोकसभा चुनाव परिणाम आए तो केंद्र के साथ ही प्रदेश के कद्दावरों के दावों की हवा निकल गई। भाजपा को महज 33 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। बड़ी बात यह रही कि 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा को 28 सीटों का नुकसान हुआ।
लोकसभा में अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने पर भाजपा में तमाम मैराथन मंथन हुए। लगभग तय हुआ कि दलित और ओबीसी वर्ग का रुझान विपक्ष की और चला गया। इसके तमाम कारण माने गए। इसमें एक अहम कारण सपा द्वारा पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) के फॉर्मूले को भी माना जा रहा है। इसके बाद से ही भाजपा के दिग्गज नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें आ गई है। अब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को लेकर मंथन इस बात का है कि ऐसा कौन सा नेता हो जो ओबीसी और दलितों के साथ ही सवर्ण जाति को साथ लेकर चल सके। इसी बात को लेकर लखनऊ से लेकर दिल्ली तक मंथन जारी है। कई मौके ऐसे आए कि अब हुआ प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव, लेकिन हर बार बाजी पलट जा रही है।
प्रदेश अध्यक्ष की तैनाती को लेकर पड़ रहीं तारीख पर तारीख भाजपा को अब आने वाले समय में भारी पड़ सकती है। क्योंकि अगले साल होने वाले पंचायत चुनाव के मेगा शो की आहट प्रदेश में शुरू हो चुकी है। सपा, कांग्रेस और बसपा समेत अन्य पार्टियों ने तैयारी शुरू कर दी हैं। इसके बाद 2027 में विधान सभा चुनाव प्रस्तावित है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष की तैनाती नहीं होने से भाजपा का कार्यकर्ता खासा असमंजस में हैं। अब देखना है कि भाजपा निकट भविष्य में प्रदेश का अध्यक्ष तय कर पाती है या नहीं ।
इन नामों पर हो रहा है विचार
पार्टी के सूत्रों की माने तो सपा के पीडीए की काट के लिए ओबीसी या अनुसूचित जाति के नेता को ही अध्यक्ष का ताज पहनाया जा सकता है। ओबीसी समाज से प्रमुख नाम योगी सरकार में मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह, धर्मपाल सिंह के अलावा केंद्र में मंत्री बीएल वर्मा के साथ ही बाबूराम निषाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति आदि पर विचार चल रहा है। स्वतंत्रदेव पहले भी प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं।
उधर अनुसूचित जाति से पूर्व केंद्रीय मंत्री राम शंकर कठेरिया, विनोद सोनकर, विद्या सागर सोनकर समेत दर्जन भर नामों पर भी मंथन हो रहा है।
यदि किसी कारणवश सामान्य वर्ग पर विचार हुआ तो पूर्व उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, श्रीकांत शर्मा समेत अन्य नेताओं पर विचार हो सकता है।