हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी वह प्रदर्शन नहीं कर सकी, जिसकी उम्मीद उन्होंने और उनके समर्थकों ने की थी। बड़े दावों और चर्चाओं के बावजूद पार्टी शुरू से ही चुनावी जमीन पर कमजोर दिखी। नतीजों के आते ही स्पष्ट हो गया कि जन सुराज राज्य की पारंपरिक राजनीति में वह सेंध नहीं लगा पाई जिसकी कल्पना की गई थी। इसके पीछे कई प्रमुख कारण रहे, जिनका असर सीधे वोटों पर पड़ा।
सबसे पहले, पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी बूथ स्तर पर संगठन की कमी रही। सोशल मीडिया पर जन सुराज जरूर दिखाई दी, लेकिन गांव, पंचायत और बूथ स्तर पर मजबूत कार्यकर्ता ढांचा नहीं बन पाया। पार्टी के पास BLA तक की कमी रही, जिससे बूथ प्रबंधन कमजोर रहा। टिकट वितरण में आखिरी समय में हुए बदलावों ने कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ाई और पूरे अभियान का उत्साह कम कर दिया। ऑनलाइन लोकप्रियता जमीन पर वोटों में तब्दील नहीं हो सकी।
दूसरा बड़ा कारण रहा कि प्रशांत किशोर खुद चुनाव नहीं लड़े। इससे जनता और समर्थकों के बीच भ्रम की स्थिति बनी। कई लोगों ने इसे आत्मविश्वास की कमी माना। PK मुद्दे जरूर उठाते रहे, लेकिन जनता के मन में यह भरोसा नहीं बैठ सका कि वे खुद सिस्टम में उतरकर बदलाव लाने के लिए तैयार हैं। उनके लगातार हमलों का जेडीयू ने पलटकर फायदा उठाया और इसे नकारात्मक प्रचार के रूप में पेश किया।
इसके अलावा, पार्टी के अंदर मतभेद और उम्मीदवार चयन में अस्थिरता ने जन सुराज को काफी नुकसान पहुंचाया। समय-समय पर मतभेद की ख़बरें आती रहीं। कई मजबूत स्थानीय चेहरों ने अस्पष्ट टिकट नीति और नेतृत्व के तौर-तरीकों से असहज होकर दूरी बना ली। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि प्रशांत किशोर की कार्यशैली को कई संभावित नेताओं ने स्वीकार नहीं किया, जिससे संगठन विस्तार रुक गया।
कुल मिलाकर, जन सुराज सोशल मीडिया की पार्टी बनकर रह गई और मैदान की राजनीति में पिछड़ गई। चुनाव में हार ने यह साफ कर दिया कि बिना मजबूत संगठन, स्पष्ट रणनीति और जनता का भरोसा बने किसी नई पार्टी के लिए बिहार जैसी जटिल राजनीति में जगह बनाना आसान नहीं है।













