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भारतीय ग्रामीण जीवनशैली – एक परिचय

बुटा सिंह,
सहायक आचार्य,
ग्रामीण विकास विभाग,
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली

भारत की आत्मा है, जो देश की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को दर्शाती है। यह जीवनशैली शहरी हलचल से दूर, प्रकृति के करीब और सामुदायिक सौहार्द
पर आधारित है। भारत की एक बड़ी आबादी आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, और उनका जीवन कृषि, पशुपालन और पारंपरिक शिल्प पर केंद्रित है। सदियों से, ग्रामीण जीवनशैली ने भारतीय संस्कृति, परंपराओं और सामाजिक ताने-बाने को आकार दिया है। यह केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति है जो प्रकृति के साथ सामंजस्य, सामुदायिक भावना और एक विशेष लय में चलती है। भारतीय ग्रामीण जीवनशैली आधुनिक शहरी भाग-दौड़ से काफी भिन्न है, और इसकी अपनी विशिष्ट पहचान, चुनौतियाँ और सुंदरताएँ हैं।

कृषि आधारित अर्थव्यवस्था:

भारतीय ग्रामीण जीवन का मूल आधार कृषि है। अधिकांश ग्रामीण परिवार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खेती से जुड़े होते हैं। खेत खलिहान, फसलें, मौसम और पशुधन उनके जीवन का अभिन्न अंग होते हैं। कृषि न केवल आजीविका का साधन है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक गतिविधि भी है जहाँ बुवाई से लेकर कटाई तक के हर चरण में पारंपरिक रीति-रिवाज और त्यौहार जुड़े होते हैं। मानसून का आगमन और फसलों की अच्छी पैदावार ग्रामीणों के लिए खुशी और समृद्धि का प्रतीक होती है।

संयुक्त परिवार प्रणाली और सामुदायिक भावना:

ग्रामीण क्षेत्रों में संयुक्त परिवार प्रणाली आज भी काफी प्रचलित है। दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची और उनके बच्चे एक ही छत के नीचे रहते हैं, जो पारिवारिक मूल्यों और आपसी सहयोग को बढ़ावा देता है। पड़ोसी और रिश्तेदार भी एक बड़े परिवार का हिस्सा माने जाते हैं। सुख-दुख में एक-दूसरे का साथ देना, पर्वों और आयोजनों में मिलकर काम करना, और बच्चों की परवरिश में सभी का योगदान – ये सब ग्रामीण जीवन की सामुदायिक भावना के महत्वपूर्ण पहलू हैं। यहाँ ‘हम’ की भावना ‘मैं’ से अधिक प्रबल होती है।

प्रकृति से निकटता और सादगी:

ग्रामीण जीवनशैली प्रकृति के बेहद करीब होती है। खुली हवा, हरे-भरे खेत, शांत वातावरण और पशु-पक्षियों की आवाजें ग्रामीण जीवन का हिस्सा होती हैं। जीवन की गति धीमी और कम तनावपूर्ण होती है। लोग आमतौर पर सादा जीवन व्यतीत करते हैं, जिसमें भौतिकवादी आकांक्षाएं कम होती हैं। दैनिक दिनचर्या सूर्योदय से शुरू होकर सूर्यास्त के साथ समाप्त होती है, जो प्राकृतिक ताल पर आधारित होती है। भोजन में स्थानीय और ताजी उपज का उपयोग होता है, जो अक्सर स्वस्थ और पौष्टिक होता है।

पारंपरिक कलाएँ, हस्तशिल्प और लोक संस्कृति:

भारतीय गाँव लोक कलाओं, हस्तशिल्पों और पारंपरिक ज्ञान का भंडार हैं। बुनाई, मिट्टी के बर्तन बनाना, लकड़ी पर नक्काशी, चित्रकला, कढ़ाई और विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्प ग्रामीण महिलाओं और पुरुषों की कलात्मक प्रतिभा को दर्शाते हैं। लोकगीत, लोक नृत्य, कहानियाँ और नाटक ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होते रहते हैं। ये कलाएँ न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि सामुदायिक इतिहास और पहचान का भी प्रतिनिधित्व करती हैं।

चुनौतियाँ और परिवर्तन:

हालांकि ग्रामीण जीवनशैली में कई सकारात्मक पहलू हैं, लेकिन यह अपनी चुनौतियों से भी अछूती नहीं है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित पहुँच, बुनियादी ढाँचे का अभाव (सड़कें, बिजली, स्वच्छ पानी), कृषि पर अत्यधिक निर्भरता के कारण आर्थिक असुरक्षा, और बेरोजगारी जैसी समस्याएँ ग्रामीण क्षेत्रों में आम हैं। शहरीकरण और वैश्वीकरण के प्रभाव से ग्रामीण जीवनशैली में भी बदलाव आ रहे हैं। युवा बेहतर अवसरों की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, जिससे गाँवों में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है। आधुनिक तकनीकों और विचारों का आगमन भी पारंपरिक जीवनशैली को प्रभावित कर रहा है।

भारतीय ग्रामीण जीवनशैली एक जटिल और जीवंत है जो परंपरा और परिवर्तन, सादगी और लचीलेपन का मिश्रण है। यह भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में इसकी अहम भूमिका है। जहाँ एक ओर यह अपनी जड़ों से जुड़ी हुई है, वहीं दूसरी ओर यह आधुनिकीकरण की चुनौतियों का सामना करते हुए खुद को ढाल रही है। भारतीय ग्रामीण जीवन को समझना भारत को गहराई से समझने के समान है।

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