हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी मामले में नए तथ्य, अवधि या स्वतंत्र अपराधों का खुलासा होता है, तो दूसरी एफआईआर दर्ज करने पर कोई कानूनी रोक नहीं है। न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह और न्यायमूर्ति लक्ष्मी कांत शुक्ल की खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के टीटी एंटनी बनाम केरल राज्य फैसले के अनुसार दूसरी एफआईआर पर रोक केवल तब लागू होती है जब दोनों एक ही घटना या लेनदेन से जुड़ी हों। कोर्ट ने कहा कि यदि नई एफआईआर का दायरा और उद्देश्य पूर्व की प्राथमिकी से भिन्न है, तो उसे दर्ज करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
खंडपीठ ने गाजियाबाद निवासी पारुल बुधराजा, योगेश राना, वेद बुधराजा एवं शील कालरा की याचिका खारिज की, जिन्होंने जालसाजी और जाली दस्तावेजों के उपयोग से संबंधित एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। अदालत ने पाया कि 2021 की प्राथमिकी निवेश धोखाधड़ी से जुड़ी थी जबकि 2024 की एफआईआर नए दस्तावेजी फर्जीवाड़े पर आधारित थी, इसलिए दोनों स्वतंत्र घटनाएं हैं। कोर्ट ने कहा कि समानता का नियम व्यावहारिक रूप से लागू किया जाना चाहिए और जहां अपराधों की प्रकृति या अवधि अलग हो, वहां दूसरी एफआईआर वैध है।













