हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामलों में अनावश्यक और अत्यधिक लंबी जांच पर सख्त रुख अपनाते हुए स्पष्ट किया है कि अंतहीन जांच की अनुमति नहीं दी जा सकती। गुरुवार को दिए गए निर्णय में अदालत ने कहा कि यदि आरोपपत्र दाखिल करने में असामान्य देरी होती है, तो मुकदमे को रद्द किया जाना न्यायहित में आवश्यक है।
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की दो-judge पीठ ने बिहार कैडर के आईएएस अधिकारी रॉबर्ट लालचुंगनुंगा चोंगथु के मामले में यह महत्वपूर्ण आदेश पारित किया। अदालत ने पाया कि उनके खिलाफ लंबित मामले में 11 वर्षों बाद भी जांच पूरी नहीं हुई थी और न ही पूरक चार्जशीट दाखिल की गई। अदालत ने कहा कि ऐसी देरी न केवल आरोपी के अधिकारों का हनन है बल्कि न्याय प्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता पर भी प्रश्नचिह्न लगाती है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी भी आरोपी को निरंतर जांच और संभावित ट्रायल के भय में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि इससे उसकी रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित होती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आपराधिक न्याय व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए जांच एजेंसियों का जवाबदेह होना आवश्यक है।
अदालत ने इस मामले में जांच एजेंसी से देरी के कारण पूछे और संतोषजनक स्पष्टीकरण न मिलने पर मामला रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को न्याय व्यवस्था में दक्षता, पारदर्शिता और मानवाधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।













