हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
भारत में किडनी के अवैध कारोबार का एक बार फिर चौंकाने वाला चेहरा सामने आया है। महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के कर्ज में डूबे किसान रोशन सदाशिव कुड़े का मामला केवल एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं, बल्कि एक संगठित अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क की ओर इशारा करता है। सवाल यह है कि एक साधारण किसान हजारों किलोमीटर दूर कंबोडिया कैसे पहुंचा और उसकी किडनी कैसे निकाली गई? इस पूरे खेल का सूत्रधार कौन है, और अब तक वह कानून की पकड़ से बाहर क्यों है?

कर्ज, साहूकार और मजबूरी का जाल
रोशन पर महज एक लाख रुपये का कर्ज था, लेकिन साहूकार ने उस पर रोजाना 10 हजार रुपये ब्याज थोप दिया। इस अमानवीय दबाव में किसान की मजबूरी ने उसे उस रास्ते पर धकेल दिया, जहां शरीर का एक अंग बेचकर कर्ज चुकाने की मजबूरी बन जाती है। सरकार ने 2014 में साहूकारों पर लगाम लगाने के लिए कानून बनाया, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि अवैध वसूली और शोषण आज भी जारी है।
देश–विदेश तक फैला किडनी रैकेट
जांच और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इस अवैध कारोबार का नेटवर्क दिल्ली, हरिद्वार, देहरादून, सूरत, चेन्नई, जयपुर और महाराष्ट्र के कई शहरों तक फैला है। केवल भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका, इजराइल, कनाडा, ब्रिटेन और खाड़ी देशों तक किडनी की सप्लाई के आरोप सामने आए हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक हर साल हजारों भारतीय अपनी किडनी बेचने को मजबूर होते हैं।
डॉक्टरों और अस्पतालों की मिलीभगत
2016 में मुंबई के पवई स्थित एक बड़े अस्पताल से लेकर पुणे के रूबी हॉल क्लिनिक तक किडनी ट्रांसप्लांट में गड़बड़ियों के मामले सामने आ चुके हैं। पुणे पोर्श केस में फंसे डॉ. अजय तवारे का नाम भी किडनी ट्रांसप्लांट रैकेट से जुड़ चुका है। इसके बावजूद अधिकतर मामले ठंडे बस्ते में डाल दिए गए और असली सरगना अब तक बेनकाब नहीं हुआ।
कानून सख्त, लेकिन अमल कमजोर
भारत में ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट (THOA) 1994 और उससे जुड़े नियम मौजूद हैं। नजदीकी रिश्तेदारों के अलावा किसी अन्य डोनर के लिए सख्त जांच और अनुमति की व्यवस्था है। फिर भी सवाल उठता है कि इतनी जांच के बावजूद अवैध ट्रांसप्लांट कैसे हो रहे हैं? क्या नियमों को जानबूझकर कमजोर किया जा रहा है?
ED–CBI जांच क्यों जरूरी
लाखों–करोड़ों रुपये का लेन–देन, अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन और बड़े डॉक्टरों की संलिप्तता के बावजूद अब तक ईडी या सीबीआई की व्यापक जांच क्यों नहीं हुई? यह सवाल न केवल राज्य सरकार बल्कि केंद्र सरकार की भूमिका पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है। यदि समय रहते सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो रोशन जैसे कई और लोग इस अमानवीय धंधे की भेंट चढ़ते रहेंगे।













