हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: 13अप्रैल: 2025,
विवादों में घिरे वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर कोर्ट में चुनौती
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 अब कानून बन चुका है, लेकिन इसके प्रावधानों को लेकर देशभर में राजनीतिक और सामाजिक बहस तेज हो गई है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP), AIMIM और कई मुस्लिम संगठनों ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
राजस्थान सरकार का अप्रत्याशित कदम: सुप्रीम कोर्ट में पक्षकार बनने की मांग
इन याचिकाओं की सुनवाई के बीच राजस्थान की भाजपा सरकार ने एक बड़ा और अप्रत्याशित कदम उठाया है। भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर स्वयं को वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की सुनवाई में पक्षकार बनाने की अनुमति मांगी है। यह सुनवाई 16 अप्रैल को निर्धारित की गई है।
भजनलाल सरकार का रुख: ‘इतिहासिक सुधारों का बचाव करना चाहता हूं’
राजस्थान सरकार ने साफ किया है कि वह इस कानून का विरोध नहीं बल्कि इसका समर्थन करने सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। सरकार का कहना है कि वह वक्फ कानून में किए गए ऐतिहासिक सुधारों का संरक्षण और बचाव करना चाहती है।
राजस्थान के महाधिवक्ता शिवमंगल शर्मा ने यह अर्जी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है। राज्य सरकार की ओर से यह हस्तक्षेप आवेदन कानूनी सलाह और विस्तृत विमर्श के बाद दाखिल किया गया।
राजस्थान सरकार ने अपनी अर्जी में क्या कहा?
सरकार ने अपने आवेदन में यह स्पष्ट किया है कि:
- राज्य वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और विनियमन हेतु प्रमुख कार्यकारी प्राधिकरण है, इसलिए उसे इस मुद्दे में सीधा और महत्वपूर्ण हित प्राप्त है।
- अधिनियम 2025 को व्यापक राष्ट्रीय परामर्श के बाद पारित किया गया है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
- कानून का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकना और संपत्ति अधिसूचना प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना है।
विवादित प्रावधानों का बचाव: ‘मनमानी अधिसूचना पर रोक’
राज्य सरकार ने कानून का बचाव करते हुए कहा है कि यह अधिनियम एक पारदर्शी और संविधानसम्मत सुधार है। इसमें मनमाने ढंग से सरकारी और निजी भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने की व्यवस्था की गई है।
एक अहम प्रावधान यह जोड़ा गया है कि अब किसी भी भूमि को वक्फ के रूप में अधिसूचित करने से पहले 90 दिन का सार्वजनिक नोटिस देना और आपत्तियों को आमंत्रित करना अनिवार्य होगा। इससे प्रभावित पक्षों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित होगी।
संवैधानिक सवालों पर राजस्थान सरकार की दलील
राज्य सरकार ने कहा है कि यह अधिनियम न तो अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है, न ही यह अनुच्छेद 14 और 15 के तहत समानता के अधिकार का हनन करता है।
राजस्थान सरकार ने यह भी बताया कि यह कानून संयुक्त संसदीय समिति द्वारा 284 से अधिक हितधारकों — जिनमें 25 राज्य वक्फ बोर्ड, 15 राज्य सरकारें, सामाजिक संगठन और विधि विशेषज्ञ शामिल थे — से परामर्श के बाद पारित किया गया।