हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: 11अप्रैल: 2025: अलीगढ़,
अलीगढ़, 11 अप्रैल: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “दर्शन और काव्यशास्त्र” का समापन विद्वतापूर्ण चर्चा और अकादमिक संवाद के साथ संपन्न हुआ। संगोष्ठी में देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए विशेषज्ञों और विद्वानों ने शास्त्र, दर्शन और काव्य के परस्पर संबंधों पर अपने विचार रखे।
मुख्य अतिथि प्रो. मोहसिन खान का वक्तव्य: संवाद ही दर्शन और काव्य की आत्मा
मुख्य अतिथि एवं एएमयू के सहकुलपति प्रो. मोहसिन खान ने उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि दर्शन और काव्यशास्त्र के बीच सतत संवाद परंपरा ने ही भारतीय बौद्धिक परंपरा को जीवंत बनाए रखा है। उन्होंने शास्त्रीय परंपराओं को समकालीन विमर्शों के अनुकूल बताते हुए कहा कि ये परंपराएं पुनःसंपर्क और व्याख्या के लिए सदा खुली रहती हैं, जिससे नवोदित विद्वानों को नया दृष्टिकोण मिलता है।
काव्यशास्त्र और दर्शन की समांतरता पर प्रकाश
दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ विद्वान प्रो. ओम नाथ बिमाली ने शब्द और अर्थ के गहन संबंध की व्याख्या करते हुए बताया कि ये दोनों उत्पन्न नहीं होते, बल्कि प्राप्त होते हैं। उन्होंने शब्द की शक्ति को उसके अर्थ में निहित बताते हुए कहा कि काव्य और दर्शन दोनों का उद्देश्य ज्ञान का संप्रेषण है।
शास्त्र की अवधारणा और विकास पर गहन विमर्श
श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुरली मनोहर पाठक ने शास्त्र की उत्पत्ति, उसकी अवधारणा और विकास यात्रा को क्षेत्रीय व सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में समझाया। उन्होंने कहा कि भारत ने विश्व को अपने आरंभिक दार्शनिकों के माध्यम से समृद्ध किया है, और शास्त्र का स्वरूप संवादात्मक होता है।
काव्यशास्त्र और दर्शन के संवाद की निरंतरता पर बल
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. भारतेंदु पांडेय ने संगोष्ठी की अकादमिक गहराई की सराहना करते हुए कहा कि दर्शन और काव्य का निरंतर संवाद भारतीय बौद्धिक परंपरा की शक्ति है। उन्होंने ऐसे आयोजनों को युवा शोधकर्ताओं के लिए अत्यंत प्रेरणादायक बताया।
आयोजन समिति की ओर से आभार प्रदर्शन
संगोष्ठी की संयोजिका एवं संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. सारिका वाष्र्णेय ने सभी वक्ताओं, अतिथियों और प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया। डॉ. जफर इफ्तेखार ने स्वागत भाषण में संगोष्ठी की सांस्कृतिक विविधता और समन्वय को रेखांकित किया। डॉ. हेमबाला ने संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए उद्देश्य और निष्कर्ष साझा किए और एक स्वलिखित श्लोक के माध्यम से प्रेरणादायक संदेश भी दिया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. हिमांशु आचार्य ने प्रस्तुत किया।
तकनीकी सत्रों में गूंजे वैचारिक विमर्श
दिन में दो तकनीकी सत्र आयोजित हुए, जिनकी अध्यक्षता डॉ. साधना कंसल और प्रो. मसूद अली ने की।
प्रो. टी. एन. सतीशन ने मलयालम काव्य पर भारतीय दर्शन के प्रभाव और मणिप्रवाळम् व श्लीलातिलकमश् की तात्विक गहराइयों की व्याख्या की।
डॉ. आमिर रियाज ने सूफी काव्य में प्रेम-दर्शन को आमिर खुसरो, रूमी और इकबाल के माध्यम से जोड़ा।
मुख्य व्याख्यान: मुक्ति और प्रेम के दार्शनिक संबंधों पर विमर्श
मुख्य व्याख्यान में डॉ. साधना कंसल ने मुक्ति और प्रेम के बीच के दार्शनिक संबंधों की चर्चा की। इस सत्र का समापन प्रो. मसूद अली बेग की टिप्पणियों से हुआ, जबकि संयोजक की भूमिका डॉ. मुकेश ने निभाई।
अंतिम सत्र में भाषाविज्ञान, दार्शनिक काव्य और भाषा का मेल
अंतिम सत्र की अध्यक्षता प्रो. ओम नाथ बिमाली और प्रो. सना उल्लाह ने की।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. अनिल प्रताप ने भाषाविज्ञान और नव्य न्याय भाषा की भूमिका को रेखांकित करते हुए काव्य के ज्ञानात्मक और भावात्मक पक्षों की व्याख्या की।
प्रो. सना उल्लाह ने संस्कृत और अरबी भाषाओं के ऐतिहासिक संबंधों और दर्शनशास्त्र की साझा विरासत पर प्रकाश डाला।
डॉ. गगन प्रताप सिंह, डॉ. सदफ फरीद सहित कई विद्वानों ने सत्र में भाग लिया, जिसमें संयोजन का कार्य डॉ. शगुफ्ता ने किया।
उपसंहार
तीन दिवसीय इस संगोष्ठी ने भारतीय दर्शन और काव्यशास्त्र के अंतःसंबंधों को नई दृष्टि से समझने का अवसर प्रदान किया। विद्वानों के विचारों और अकादमिक प्रस्तुतियों ने न केवल परंपरागत ज्ञान को पुनःप्रकाशित किया, बल्कि समकालीन संदर्भों में भी उसकी प्रासंगिकता को सिद्ध किया।