हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:16 जुलाई 2025
अलीगढ़।संजय सक्सेना – शहर में आवारा पशुओं विशेषकर गौवंश की बढ़ती संख्या अब एक गंभीर समस्या बन गई है, लेकिन नगर निगम की कार्रवाई केवल जुर्माना वसूलने और गौवंश को फिर से छोड़ने तक सीमित रह गई है। स्थिति यह है कि सुबह घर से निकलते ही लोगों का सामना सबसे पहले सड़कों, कॉलोनियों, स्कूलों, बाजारों और पार्कों में घूमते हुए इन आवारा जानवरों से होता है, जो न केवल यातायात को बाधित करते हैं बल्कि राहगीरों की जान के लिए भी खतरा बन चुके हैं।
नगर निगम की ओर से दावा किया जाता है कि शहर में सक्रिय प्रवर्तन दल अवैध गतिविधियों और समस्याओं पर अंकुश लगाने के लिए कार्यरत है, लेकिन धरातल पर हकीकत कुछ और ही है। सेवा भवन से निकलने वाले अधिकारी आवारा पशुओं के खिलाफ कोई स्थायी समाधान करने के बजाय केवल जुर्माना वसूल कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते हैं। यही नहीं, करोड़ों रुपये की सैलरी वाले इन प्रवर्तन कर्मचारियों का कार्य शहर की समस्या को हल करना कम और अखबारों की सुर्खियों में रहना अधिक प्रतीत होता है।
शहर में आवारा पशुओं के लिए बनाई गई गौशालाएं अब पूरी तरह भरी हुई हैं। नगर निगम के पास इतने संसाधन और जगह नहीं है कि वह सभी पशुओं को वहां रख सके। पशु चिकित्सा एवं कल्याण अधिकारी का कार्य प्रतिदिन शहर में गश्त कर आवारा पशुओं को पकड़ना और फिर उनसे संबंधित व्यक्ति पर जुर्माना लगाकर उसे पशु सौंप देना मात्र रह गया है। अगर कोई गौवंश पकड़ में आता है और उसका मालिक सामने आ जाता है, तो उससे जुर्माना वसूल कर पशु को उसी के हवाले कर दिया जाता है।
और अगर किसी पशु का कोई दावेदार नहीं होता, तो ऐसे गौवंशों को शहर की सीमा से बाहर ले जाकर जंगलों में छोड़ दिया जाता है। लेकिन यह समाधान भी स्थायी नहीं है, क्योंकि कुछ ही दिनों में ये पशु फिर से शहर में लौट आते हैं और यही चक्र चलता रहता है। नतीजतन, इन पशुओं के कारण ट्रैफिक जाम, सड़क दुर्घटनाएं और आम जनता की परेशानी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।
शहरवासियों का कहना है कि नगर निगम को इस मुद्दे पर गंभीरता से काम करने की जरूरत है। केवल जुर्माना लगाना या प्रेस विज्ञप्ति जारी कर अपनी पीठ थपथपाना अब पर्याप्त नहीं है। आवारा पशुओं के लिए स्थायी आश्रय, बेहतर निगरानी व्यवस्था और दीर्घकालीन योजना की आवश्यकता है, जिससे शहर को इस बड़ी समस्या से निजात दिलाई जा सके।