हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
नई दिल्ली। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) हर दो महीने में मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक आयोजित करता है। इस बैठक में रेपो रेट सहित कई वित्तीय निर्णयों की समीक्षा की जाती है। दिसंबर में होने वाली आगामी बैठक को लेकर अर्थव्यवस्था से जुड़े लोगों की निगाहें टिकी हैं, क्योंकि इसी दौरान केंद्रीय बैंक रेपो रेट में संभावित बदलाव का फैसला ले सकता है।
वैश्विक वित्तीय संस्था Morgan Stanley के अनुसार, आरबीआई आगामी बैठक में रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती कर सकती है। अगर ऐसा होता है, तो इसका सीधा असर आम लोगों की जेब पर पड़ेगा, क्योंकि रेपो रेट में बदलाव ब्याज दरों को प्रभावित करता है।
क्या है रेपो रेट?
रेपो रेट वह ब्याज दर है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक आरबीआई से शॉर्ट-टर्म लोन लेते हैं। मौद्रिक समिति की बैठक के दौरान इसी दर की समीक्षा की जाती है। यदि बैंक कम ब्याज पर आरबीआई से पैसा उधार लेते हैं, तो आगे ग्राहकों को भी कम ब्याज पर लोन उपलब्ध कराने की संभावना बढ़ जाती है। यही कारण है कि रेपो रेट में बदलाव का असर सीधे आपकी लोन EMI पर पड़ता है।
रेपो रेट कटौती का क्या होगा असर?
अगर दिसंबर में रेपो रेट में 0.25% की कटौती होती है, तो बैंकों के लिए कर्ज लेना सस्ता हो जाएगा। इससे गृह ऋण, वाहन ऋण और पर्सनल लोन की ब्याज दरों में कमी आ सकती है। ब्याज दर गिरने पर आपकी EMI भी कम हो जाएगी। हालांकि, यह बैंकों पर निर्भर करता है कि वे इस कटौती को ग्राहकों तक कितनी जल्दी और कितनी मात्रा में पहुंचाते हैं।
वहीं, यदि रेपो रेट बढ़ता है, तो बैंकों को महंगा लोन मिलेगा, जिससे ग्राहकों के लोन की ब्याज दर बढ़ेगी और EMI भी बढ़ जाएगी।
क्यों बदलती है RBI रेपो रेट?
केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मनी सप्लाई को नियंत्रित करने के लिए रेपो रेट में बदलाव करता है। जब महंगाई बढ़ती है, तो आरबीआई रेपो रेट बढ़ाकर बाजार में नकदी की उपलब्धता कम करता है। वहीं महंगाई कम होने पर रेपो रेट घटाकर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है। इस तरह रेपो रेट मौद्रिक नीति का अहम उपकरण है, जिसके माध्यम से महंगाई और आर्थिक स्थिरता को संतुलित किया जाता है।













