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“अलविदा धर्मेन्द्र: बॉलीवुड का ‘ही-मैन’ – संघर्ष, सफर और प्रेरणा की कहानी”

धर्मेन्द्र का प्रारंभिक जीवन और परिवार

8 दिसंबर 1935 को पंजाब के लुधियाना जिले के छोटे से गांव सानेहवाल में जन्मे ‘धर्म सिंह देओल’, जिन्हें पूरी दुनिया धर्मेन्द्र के नाम से जानती है, भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित अभिनेताओं में से एक हैं। उनके पिता केवल किशन सिंह देओल गांव के स्कूल के हेडमास्टर थे, और माता सतवंत कौर एक सरल गृहिणी थीं। धर्मेन्द्र का परिवार पंजाब में सादगी और कर्मभूमि के लिए जाना जाता था, जिससे उन्होंने मेहनत और ईमानदारी के संस्कार ग्रहण किए।

धर्मेन्द्र का बचपन अपने गांव के खेत-खलिहानों और मिट्टी में बीता। उन्होंने सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल, ललटन कलां, लुधियाना से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, और आगे की पढ़ाई इंटरमीडिएट रामगढ़िया कॉलेज, फगवाड़ा से की। पढ़ाई में विशेष रुचि नहीं थी, जिससे वे 12वीं के बाद अपनी रुचियों की ओर बढ़ गए।[7][1]

संघर्ष और मुंबई का सफर

फिल्मों के प्रति दीवानगी और अभिनय का पक्का इरादा उन्हें मायानगरी मुंबई ले आया। 1958 में ‘फिल्मफेयर न्यू टैलेंट हंट प्रतियोगिता’ में विजेता बनने के बाद उनका फिल्मों में पहला कदम पड़ा। शुरुआत के दिनों में संघर्ष बहुत था—पैसे नहीं थे, ठहरने की जगह नहीं थी, लेकिन जज्बा बुलंद था

पारिवारिक जीवन

धर्मेन्द्र की पहली शादी 19 वर्ष की उम्र में प्रकाश कौर से हुई थी। उनसे दो बेटे (सनी देओल और बॉबी देओल) और दो बेटियां (विजेता और अजिता देओल) हैं। दोनों बेटे बॉलीवुड के प्रमुख अभिनेता हैं। इसके बाद धर्मेन्द्र ने अभिनेत्री हेमा मालिनी से 1980 में विवाह किया। इस संबंध से उनकी दो बेटियां (ईशा और अहाना देओल) हैं। धर्मेन्द्र के परिवार में अब देओल खानदान की तीसरी पीढ़ी भी फिल्मों में सक्रिय है।

फिल्मी करियर : चोटी से शिखर तक

1960 में अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म ‘दिल भी तेरा, हम भी तेरे’ से धर्मेन्द्र ने अपने सफर की शुरुआत की। शुरुआती वर्षों में वे रोमांटिक हीरो के रूप में जाने गए। “आयी मिलन की बेला,” “अनुपमा,” और “फूल और पत्थर” जैसी फिल्मों ने उन्हें लोकप्रियता की ऊंचाइयों तक पहुंचाया। खासतौर से ‘फूल और पत्थर’ (1966) के लिए उन्हें पहला फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर नॉमिनेशन मिला।

1970 और 80 के दशक में वे हिंदी सिनेमा के सबसे सफल अभिनेताओं में गिने जाने लगे। “शोले,” “धरम वीर,” “मेरा गांव, मेरा देश,” “सीता और गीता,” “चुपके चुपके,” “यादों की बारात” जैसी फिल्में आज भी मील के पत्थर मानी जाती हैं। उनकी जोड़ी हेमा मालिनी, राखी, रेखा, नूतन, माला सिन्हा, सायरा बानो जैसी अभिनेत्रियों के साथ खूब पसंद की गई।

अद्भुत विविधता: रोमांस से एक्शन तक

एक साधारण रोमांटिक हीरो से लेकर ‘ही-मैन ऑफ बॉलीवुड’ की छवि तक पहुंचने में धर्मेन्द्र ने थ्रिलर, एक्शन, कॉमेडी और ड्रामा हर शेड में खुद को स्थापित किया। ‘शोले’ में वीरता, ‘चुपके चुपके’ में हास्य, ‘मेरा गांव मेरा देश’ में एक्शन, ‘सीता और गीता’ में नाटकीयता—हर शैली में उनकी खास छाप मौजूद रही।

राजनीति और सामाजिक योगदान

फिल्मों के बाद धर्मेन्द्र ने राजनीति की ओर रुख किया। 2004 में बीजेपी के टिकट पर बीकानेर से सांसद बने और लोकसभा में जनता की आवाज़ बने। हालांकि अभिनय उनकी प्राथमिकता हमेशा रही, राजनीति में भी उन्होंने ईमानदारी के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाई।

सम्मान और पुरस्कार

धर्मेन्द्र को 2012 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, सर्वश्रेष्ठ निर्माता के तौर पर ‘घायल’, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समेत कई सम्मान मिले हैं। इनका नाम उन विरले सितारों में है जिन्हें हर पीढ़ी प्यार और सम्मान देती है।

धर्मेन्द्र के अद्भुत संवाद

धर्मेन्द्र के कुछ दमदार डायलॉग्स आज भी फ्रंटलाइन में गूंजते हैं:

  • “कुत्ते, कमीने मैं तेरा खून पी जाऊंगा!” (शोले)
  • “जो डर गया, समझो मर गया।” (फूल और पत्थर)
  • “मर्द बनने के लिए शरीर नहीं, हिम्मत चाहिए।” (धरम वीर)
  • “तुम्हारा नाम क्या है, बसंती?” (शोले)

प्रेरणा की मिसाल – आज का धर्मेन्द्र

धर्मेन्द्र का जीवन एक सच्ची प्रेरणा —कैसे एक छोटे गांव से निकला लड़का अपने संघर्ष और मेहनत के दम पर न केवल बॉलीवुड पर राज करता है, बल्कि पूरे देश के लोगों के दिलों में जगह बना लेता है। पारिवारिक मूल्यों, मेहनत, संघर्ष और सादगी के साथ-साथ उनका विनोदी स्वभाव भी लोगों को उनका मुरीद बना देता है।

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