हिन्दुस्तान मिरर न्यूज: 21 जुलाई 2025
देश की न्यायपालिका के इतिहास में एक बड़ा मोड़ सामने आया है। दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। यह पहली बार है जब एक पूर्व उच्च न्यायालय न्यायाधीश पर इस प्रकार की गंभीर संवैधानिक कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है।
क्या है मामला?
15 मार्च को दिल्ली स्थित न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी बंगले में आग लगने की सूचना मिली थी। अग्निशमन विभाग जब घटनास्थल पर पहुंचा तो वहां जली हुई नकदी के ढेर पाए गए। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक आंतरिक जांच समिति गठित की। 64 पृष्ठों की जांच रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया कि जिस स्थान पर नकदी मिली, वहां जस्टिस वर्मा और उनके परिजनों की सीधी पहुंच थी। रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी गई।
महाभियोग प्रक्रिया की शुरुआत
सोमवार को 145 सांसदों—जिनमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के प्रतिनिधि शामिल हैं—ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को एक औपचारिक ज्ञापन सौंपा। इस ज्ञापन में न्यायमूर्ति वर्मा को पद से हटाने की मांग की गई है। हस्ताक्षर करने वालों में राहुल गांधी, अनुराग ठाकुर और सुप्रिया सुले जैसे बड़े नेता शामिल हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), जेडीयू, जेडीएस और टीडीपी जैसे दलों ने भी समर्थन दिया है।
क्या है महाभियोग की संवैधानिक प्रक्रिया?
भारत के संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के किसी न्यायाधीश को केवल संसद की प्रक्रिया और राष्ट्रपति के आदेश से ही हटाया जा सकता है।
महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए:
- लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों
- राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर अनिवार्य हैं।
प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति इसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं। प्रस्ताव स्वीकार होने पर न्यायाधीश की जांच के लिए एक समिति गठित की जाती है।
सरकार और न्यायपालिका की प्रतिक्रियाएं
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने पुष्टि की है कि सरकार इस प्रक्रिया को लेकर गंभीर है और अगला कदम उठाने के लिए तैयार है।
वहीं, न्यायमूर्ति वर्मा ने सभी आरोपों को बेतुका और साजिशन करार दिया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जांच समिति की वैधता और निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट या मुख्य न्यायाधीश को हाईकोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।
ऐतिहासिक संदर्भ
भारत में अब तक किसी भी न्यायाधीश को महाभियोग के जरिए पद से नहीं हटाया गया है, हालांकि यह छठा अवसर है जब इस प्रकार की प्रक्रिया शुरू की गई है। इससे पहले 2018 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन वह आगे नहीं बढ़ पाया था।