हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: 17 अप्रैल: 2025,
राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश को लेकर गंभीर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि भारत जैसे लोकतंत्र में इस बात की कल्पना नहीं की गई थी कि न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यकारी जिम्मेदारियाँ निभाएंगे और ‘सुपर संसद’ की तरह काम करेंगे।
उपराष्ट्रपति ने उस आदेश का ज़िक्र किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर विधेयक पर फैसला लेने की समयसीमा तय की है। उन्होंने इसे एक अभूतपूर्व स्थिति बताया और सवाल उठाया कि क्या यह संविधान के ढांचे के अनुरूप है।
धनखड़ ने कहा, “राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद है। उन्हें निर्देश देना संविधान की आत्मा के विपरीत है। अब जज विधायी फैसले लेंगे, कार्यपालिका का काम करेंगे, और सुपर संसद के रूप में काम करेंगे – ये स्थिति अत्यंत चिंताजनक है।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान की व्याख्या का अधिकार केवल संविधान पीठ को है और वह भी अनुच्छेद 145(3) के अंतर्गत, जिसमें कम से कम पाँच न्यायाधीश होने चाहिए।
धनखड़ ने कहा कि यह स्थिति देश के लोकतंत्र के लिए चेतावनी स्वरूप है और सभी संवैधानिक संस्थाओं को अपने-अपने दायरे में रहकर काम करना चाहिए।