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​विकल्प नहीं, अनिवार्यता : गाँव की ओर वापसी — आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत से राष्ट्र का नवनिर्माण

बुटा सिंह
सहायक आचार्य,
ग्रामीण विकास विभाग,
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली

प्रस्तावना : विकास का बदलता क्षितिज

भारत, जो अपनी आत्मा को गाँवों में सँजोए रखता है, के लिए विकास की परिभाषा हमेशा से एक चुनौती रही है। दशकों तक, विकास का पर्याय शहरीकरण रहा—एक ऐसी ‘शहर की ओर दौड़’ जिसने बेहतर जीवन की लालसा में करोड़ों ग्रामीण निवासियों को अपने मूल स्थानों से विस्थापित किया। यह पलायन, जहाँ एक ओर महानगरों पर अपार बोझ डालता रहा, वहीं गाँवों को उनके सबसे महत्वपूर्ण पूंजी, मानव संसाधन से वंचित करता गया, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताना-बाना टूटने लगा।

हालांकि, 21वीं सदी में एक मूलभूत वैचारिक बदलाव आया है। अब विकास की अवधारणा एकतरफा शहरोंमुखी न होकर, संतुलित, समावेशी और टिकाऊ बन रही है। यह बदलाव एक नए मंत्र को जन्म देता है: ‘गाँव की ओर वापसी’। यह वापसी मात्र एक भौगोलिक प्रत्यावर्तन नहीं है, बल्कि एक समग्र विकास मॉडल की स्थापना का प्रतीक है, जहाँ ग्रामीण क्षेत्र निष्क्रिय पिछड़ेपन के केंद्र न होकर, समृद्धि और नवाचार के सक्रिय इंजन बनें। यह शोध आलेख ‘गाँव की ओर वापसी’ को एक अनिवार्यता के रूप में स्थापित करता है, उन संरचनात्मक चुनौतियों का गहन विश्लेषण करता है, और एक सशक्त, आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत के निर्माण के लिए आवश्यक विस्तृत रणनीतियों की पड़ताल करता है।

 I. ‘शहर की ओर दौड़’ की संरचनात्मक जड़ें

ग्रामीण भारत से शहरी केंद्रों की ओर पलायन एक आकस्मिक घटना न होकर, दशकों से उपेक्षित रही संरचनात्मक कमियों का परिणाम है। इन समस्याओं ने ग्रामीण जीवन को इतना अलाभकारी बना दिया कि पलायन एक मजबूरी बन गया।

1. कृषि-केंद्रित अर्थव्यवस्था की दुविधाएँ

ग्रामीण अर्थव्यवस्था की अति-निर्भरता कृषि पर है, जो स्वयं कई चुनौतियों से घिरी है। जलवायु परिवर्तन और मानसून की अनिश्चितता ने इसे एक जुआ बना दिया है। छोटे और सीमांत किसानों के लिए कृषि अलाभकारी होती जा रही है, क्योंकि उत्पादन लागत, अपर्याप्त मूल्य संवर्धन सुविधाओं और संगठित विपणन तंत्र की कमी के कारण उनकी आय कम रहती है। इसके अतिरिक्त, खेती के अलावा, गाँवों में गैर-कृषि रोज़गार के गुणवत्तापूर्ण और आकर्षक अवसर लगभग नगण्य रहे हैं, जिससे शिक्षित युवा शहरों के कारखानों या सेवा क्षेत्रों में अनौपचारिक रोज़गार तलाशने को विवश हैं।

2. बुनियादी ढाँचे का गहरा अंतराल

विकास की प्राथमिक विफलता बुनियादी ढाँचे में रही है। गाँवों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (विशेष रूप से उच्च और तकनीकी शिक्षा) और उन्नत स्वास्थ्य सेवाएँ लगभग अनुपस्थित हैं। अच्छे अस्पतालों और स्कूलों तक पहुँच की कमी पलायन का एक बड़ा मनोवैज्ञानिक कारक है। भौतिक कनेक्टिविटी (सड़कें, परिवहन) और डिजिटल कनेक्टिविटी (इंटरनेट, ब्रॉडबैंड) का अंतराल ग्रामीण क्षेत्रों को मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था और ज्ञान समाज से काट देता है। इस डिजिटल डिवाइड ने ग्रामीण उद्यमशीलता के अवसरों को सीमित कर दिया है, जबकि शहरी केंद्र तेज़ी से ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो रहे हैं।

3. विकेंद्रीकरण का अधूरा स्वप्न

स्वतंत्रता के बाद, पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का स्वप्न देखा गया। हालाँकि, वित्तीय स्वायत्तता और कार्यात्मक शक्तियों की कमी के कारण, पंचायती राज संस्थाएँ अक्सर सरकारी योजनाओं के मात्र निष्पादन केंद्र बनकर रह गईं। योजना निर्माण में जनभागीदारी का अभाव रहा, जिससे योजनाएँ स्थानीय आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं बन पाईं। सत्ता के केंद्रीकरण ने ग्रामीण समुदायों में स्वामित्व (Ownership) और जवाबदेही (Accountability) की भावना को कमजोर किया।

 II. ‘गाँव की ओर वापसी’: समग्र और आत्मनिर्भर विकास की अवधारणा

‘गाँव की ओर वापसी’ की सकारात्मक कल्पना केवल पलायन को रोकना नहीं है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों को इतना सशक्त बनाना है कि वे पूंजी, प्रौद्योगिकी और प्रतिभाशाली युवाओं को सक्रिय रूप से आकर्षित कर सकें। इसके लिए ग्रामीण विकास की अवधारणा को ‘खैर-ख़बर’ मॉडल से बदलकर ‘सक्रिय निवेश’ मॉडल में बदलना होगा।

1. बहु-आयामी विकास का सिद्धांत

ग्रामीण विकास अब केवल कृषि सुधार नहीं है, यह एक बहु-आयामी, समग्र (Holistic) और समावेशी प्रक्रिया है, जिसमें ये तत्व शामिल हैं:

 * आर्थिक सशक्तिकरण: कृषि के विविधीकरण के साथ-साथ गैर-कृषि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना (विनिर्माण, सेवाएँ, पर्यटन)।

 * मानव पूंजी का संवर्धन: शिक्षा, कौशल विकास और स्वास्थ्य सुविधाओं में भारी निवेश।

 * सामाजिक न्याय: महिलाओं, दलितों और कमजोर वर्गों का सशक्तिकरण, सामाजिक असमानताओं को दूर करना।

 * पर्यावरण स्थिरता: टिकाऊ कृषि, जल संरक्षण, और नवीकरणीय ऊर्जा (विशेषकर सौर ऊर्जा) का उपयोग करके ग्रामीण जीवन को पर्यावरण-अनुकूल बनाना।

2. आत्म-निर्भरता का गांधीवादी मॉडल (ग्राम स्वराज)

आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत का विचार महात्मा गांधी के ‘ग्राम स्वराज’ के दर्शन से प्रेरित है। इसका अर्थ है:

 * स्थानीय स्वशासन: पंचायती राज को वित्तीय और प्रशासनिक रूप से इतना सशक्त बनाना कि वह स्थानीय संसाधनों का प्रबंधन और स्थानीय समस्याओं का समाधान स्वयं कर सके।

 * सामुदायिक स्वामित्व: विकास परियोजनाओं में सामुदायिक स्वामित्व (Community Ownership) की भावना को बढ़ावा देना, ताकि योजनाएँ सरकारी न होकर जन-योजनाएँ बनें।

 * स्थानीय अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार: लघु और कुटीर उद्योगों, खादी, हस्तशिल्प और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देना ताकि गाँव अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए शहरों पर निर्भर न रहें।

3. ज्ञान और नवाचार का प्रवेश

ग्रामीण भारत को केवल श्रम का स्रोत मानने के बजाय, उसे नवाचार (Innovation) का केंद्र बनाना आवश्यक है। डिजिटल तकनीकों का उपयोग, कृषि में AI और डेटा साइंस का प्रवेश, और ग्रामीण युवाओं द्वारा संचालित स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना इस नए मॉडल की कुंजी है।

 III. आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत के लिए प्रभावी और विस्तृत रणनीतियाँ

‘गाँव की ओर वापसी’ के लिए केवल इच्छाशक्ति ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि लक्षित, परिणाम-आधारित (Result-Oriented) रणनीतियों की आवश्यकता है।

1. आर्थिक विविधीकरण और ‘रुर्बन’ क्लस्टर मॉडल

हमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एकल-फसल मॉडल से हटाकर विविध और लचीला (Resilient) मॉडल में बदलना होगा।

 * मूल्य संवर्धन श्रृंखला: किसानों को केवल फसल उत्पादक के बजाय कृषि-उद्यमी बनाना। प्रत्येक गाँव क्लस्टर में एग्रो-प्रोसेसिंग यूनिट्स, कोल्ड चेन और वेयरहाउसिंग की स्थापना करना। FPOs (किसान उत्पादक संगठन) को मज़बूत करना ताकि किसानों की सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति बढ़े।

 * गैर-कृषि रोज़गार का विस्फोट: श्याम प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में क्लस्टर विकसित करना जो शहरी सुविधाओं और रोज़गार के अवसरों को ग्रामीण जीवन-शैली के साथ मिलाते हैं। पर्यटन, आईटीईएस (ITES – Information Technology Enabled Services), डेटा एंट्री और ग्रामीण आउटसोर्सिंग जैसे सेवा क्षेत्रों को बढ़ावा देना।

 * कौशल विकास: युवाओं को बाजार की मांग के अनुसार तकनीकी और व्यावसायिक कौशल (जैसे प्लंबिंग, इलेक्ट्रिकल वर्क, डिजिटल मार्केटिंग) में प्रशिक्षित करना, जिससे वे गाँव में ही उच्च आय अर्जित कर सकें।

2. उच्च-गुणवत्ता वाले सामाजिक बुनियादी ढाँचे में निवेश

पलायन रोकने के लिए ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता को शहरों के समकक्ष लाना होगा।

 * स्वास्थ्य: प्रत्येक ग्राम पंचायत को आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन से जोड़ना और वेलनेस सेंटर्स को उन्नत स्वास्थ्य जाँच सुविधाओं से लैस करना। टेलीमेडिसिन के माध्यम से विशेषज्ञ डॉक्टरों की पहुँच सुनिश्चित करना।

 * शिक्षा: ग्रामीण स्कूलों में डिजिटल क्लासरूम, साइंस लैब और शिक्षकों की उच्च गुणवत्ता वाली भर्ती सुनिश्चित करना। ग्रामीण बच्चों के लिए उच्च शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण की स्थानीय उपलब्धता सुनिश्चित करना।

3. सशक्त पंचायती राज और डिजिटल सुशासन

सुशासन (Good Governance) ‘गाँव की ओर वापसी’ की आधारशिला है।

 * ‘मेरा गाँव, मेरी योजना’: विकेंद्रीकृत नियोजन को अनिवार्य बनाना। ग्राम सभाओं को योजना बनाने, बजट आवंटित करने और खर्चों की निगरानी करने की वास्तविक शक्ति देना।

 * ई-गवर्नेंस: पंचायती राज संस्थाओं के सभी कार्यों को ऑनलाइन करना। संपत्ति कर, जन्म/मृत्यु प्रमाण पत्र, और सरकारी योजनाओं का लाभ डिजिटल माध्यम से गाँव में ही उपलब्ध कराना। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और भ्रष्टाचार कम होगा।

4. पर्यावरणीय स्थिरता और लचीलापन

गाँवों को जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक लचीला (Resilient) बनाना। जल संरक्षण (परंपरागत और आधुनिक तकनीकों से), रेन वाटर हार्वेस्टिंग, और ग्रामीण आवासों के लिए नवीकरणीय ऊर्जा (सौर और पवन ऊर्जा) को बढ़ावा देना।

 IV. ‘गाँव की ओर वापसी’ के सकारात्मक परिणाम

जब उपर्युक्त रणनीतियों को सफलतापूर्वक लागू किया जाएगा, तो ‘गाँव की ओर वापसी’ एक शक्तिशाली सकारात्मक चक्र बनाएगी:

 * आर्थिक चक्र: ग्रामीण आय बढ़ेगी, जिससे उपभोग बढ़ेगा। स्थानीय बचत में वृद्धि होगी, जिसे ग्रामीण बैंक और स्वयं सहायता समूह (SHGs) स्थानीय निवेश में लगाएँगे।

 * सामाजिक पूंजी का पुनर्निर्माण: पलायन रुकने से परिवार और सामुदायिक बंधन मजबूत होंगे। बुजुर्गों की देखभाल बेहतर होगी और सामाजिक मेलजोल से सामाजिक पूंजी (Social Capital) का पुनर्निर्माण होगा।

 * राष्ट्र का लचीलापन: सशक्त ग्रामीण अर्थव्यवस्था देश को वैश्विक आर्थिक झटकों और भविष्य की महामारियों के प्रति अधिक लचीला बनाएगी। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी और शहरों पर बढ़ता दबाव कम होगा।

 * सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति: गरीबी उन्मूलन (SDG 1), खाद्य सुरक्षा (SDG 2), और गुणवत्तापूर्ण जीवन (SDG 3) जैसे वैश्विक लक्ष्यों की प्राप्ति में ग्रामीण विकास एक निर्णायक भूमिका निभाएगा।

 उपसंहार: आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत का संकल्प

‘गाँव की ओर वापसी’ अब केवल एक आदर्शवादी नारा नहीं है, बल्कि भारत को एक सशक्त, समावेशी और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के लिए एक अनिवार्यता है। दशकों की ‘शहर की ओर दौड़’ ने हमें सिखाया है कि असंतुलित विकास टिकाऊ नहीं हो सकता। सच्चा विकास तभी संभव है जब देश की आत्मा, यानी उसके गाँव, समृद्ध और शक्तिशाली हों।

वर्तमान केंद्र और राज्य सरकारों की विभिन्न योजनाओं जैसे मनरेगा, पीएमजीएसवाई, दीनदयाल अंत्योदय योजना, और डिजिटल इंडिया ने नींव तैयार की है। अब समय है इन पहलों को विकेंद्रीकरण, नवाचार और जनभागीदारी की भावना से एक जन-आंदोलन में बदलने का। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि ग्रामीण क्षेत्र सिर्फ कृषि का केंद्र न रहे, बल्कि तकनीकी नवाचार, उच्च शिक्षा और कुशल सेवाओं का केंद्र बने।

जब प्रत्येक गाँव अपने संसाधनों का स्वामी होगा, अपनी समस्याओं का हल निकालेगा, और अपने युवाओं को अवसर प्रदान करेगा, तभी ‘गाँव की ओर वापसी’ एक स्थायी वास्तविकता बनेगी। यह वापसी भारत के नवनिर्माण की दिशा में सबसे निर्णायक कदम होगा, जहाँ ग्रामीण भारत गौरव, समृद्धि और आत्मनिर्भरता के साथ राष्ट्र की प्रगति का नेतृत्व करेगा।

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