पितृ पक्ष का महत्व
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष स्थान है। इस वर्ष पितृ पक्ष 7 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर 2025 तक रहेगा। इसे पूर्वजों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद प्राप्त करने का काल माना जाता है। लोग इस अवधि में श्राद्ध, तर्पण और दान करते हैं। मान्यता है कि इससे परिवार में सुख-समृद्धि आती है और पितरों की कृपा प्राप्त होती है। परंपरा के अनुसार बेटा या पुरुष वंशज श्राद्ध करते हैं, लेकिन बदलते समय के साथ यह प्रश्न उठता है कि क्या महिलाएं भी यह कर्म कर सकती हैं।
धार्मिक मान्यताएं और शास्त्रीय मत
गरुड़ पुराण और धर्मशास्त्रों में श्राद्ध कर्म का अधिकार मुख्य रूप से पुत्र या पुरुष वंशज को दिया गया है। यह माना गया है कि पुत्र पितरों के उद्धार का माध्यम बनता है। इसलिए परंपरागत रूप से महिलाओं को श्राद्ध का अधिकार नहीं दिया गया। हालांकि, यदि किसी परिवार में पुत्र न हो, तो ऐसी स्थिति में स्त्री भी श्राद्ध कर सकती है। मगर इसके लिए विशेष नियम निर्धारित किए गए हैं।
स्त्रियों के लिए श्राद्ध करने के नियम
ज्योतिष और शास्त्रों के अनुसार, महिलाएं स्वयं पूर्ण विधि से श्राद्ध नहीं करतीं बल्कि पंडित के माध्यम से यह कर्म संपन्न कराती हैं। स्त्री पहले संकल्प लेकर पंडित को सौंपती है और फिर पंडित उनकी ओर से श्राद्ध करते हैं। इस प्रकार धार्मिक परंपरा का निर्वाह होता है।
पितृ पक्ष में महिलाएं क्या कर सकती हैं?
- घर में दीप जलाकर पितरों का स्मरण
- अन्नदान और गौदान करना
- ब्राह्मणों को भोजन कराना
- पितरों के नाम से दान करना
निष्कर्ष
पितृ पक्ष में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। भले ही पारंपरिक श्राद्ध पुरुष करते हों, लेकिन महिलाएं भी संकल्प, दान और सेवा से पितरों को प्रसन्न कर सकती हैं। इस प्रकार वे भी अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए योगदान दे सकती हैं।