केंद्र सरकार आगामी 1 दिसंबर से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र में संविधान (131वां संशोधन) विधेयक, 2025 पेश करने जा रही है। इस विधेयक के तहत चंडीगढ़ को संविधान के अनुच्छेद 240 के दायरे में शामिल किया जाएगा, जिससे राष्ट्रपति को इस केंद्र शासित प्रदेश के लिए सीधे विनियम और कानून बनाने का अधिकार मिल जाएगा। यह मॉडल उन केंद्र शासित प्रदेशों जैसा होगा, जहां विधानसभा नहीं है—जैसे अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, दादरा-नगर हवेली व दमन-दीव। पुडुचेरी भी इसी दायरे में आता है जब उसकी विधानसभा निलंबित रहती है।
क्या है अनुच्छेद 240?
अनुच्छेद 240 राष्ट्रपति को कुछ केंद्र शासित प्रदेशों के लिए विनियम बनाने की शक्ति देता है ताकि वहां सुशासन, शांति और प्रगति सुनिश्चित की जा सके। हालांकि जहां अनुच्छेद 239A के तहत विधानसभा मौजूद है, वहां उसके प्रथम सत्र के बाद राष्ट्रपति विनियम जारी नहीं कर सकते। राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए ऐसे विनियम संसद द्वारा पारित कानून के समान प्रभाव रखते हैं और किसी मौजूदा कानून को संशोधित या निरस्त भी कर सकते हैं।
विवाद की वजह क्या है?
केंद्र के इस नए प्रस्ताव का अर्थ है कि चंडीगढ़ को बाकी केंद्र शासित प्रदेशों की तरह एक स्वतंत्र प्रशासक के अधीन लाया जाएगा। अभी चंडीगढ़ का प्रशासन पंजाब के राज्यपाल द्वारा देखा जाता है। 1984 से यही व्यवस्था लागू है, जबकि 2016 में केंद्र ने एक स्वतंत्र प्रशासक (आईएएस अधिकारी के. जे. अल्फोंस) नियुक्त करने की कोशिश की थी, लेकिन विरोध के कारण फैसला अटक गया।
पंजाब में राजनीतिक भूचाल
विधेयक के संसद में पेश होने की सूचना के बाद पंजाब की राजनीति में हलचल बढ़ गई है।
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इसे पंजाब की राजधानी छीनने की साजिश बताया। उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ हमेशा पंजाब का हिस्सा रहा है और रहेगा।
कांग्रेस नेता अमरिंदर सिंह राजा वडिंग ने चेतावनी दी कि चंडीगढ़ को पंजाब से अलग करने की किसी भी कोशिश के गंभीर नतीजे होंगे। उन्होंने संसद में विधेयक का कड़ा विरोध करने की बात कही।
शिरोमणि अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने विधेयक को संघवाद के खिलाफ बताते हुए इसे “पंजाब को चंडीगढ़ लौटाने के वादे से विश्वासघात” कहा।
इतिहास में चंडीगढ़ का स्थान
भारत-पाक विभाजन के बाद जब लाहौर पाकिस्तान में चला गया, तब चंडीगढ़ को पंजाब की नई राजधानी बनाया गया।
1966 में भाषाई आधार पर पंजाब के पुनर्गठन के दौरान चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा दोनों की संयुक्त राजधानी घोषित किया गया। इसके बावजूद पंजाब लगातार चंडीगढ़ पर अपने अधिकार का दावा करता रहा है। विभिन्न आयोगों और समझौतों में भी चंडीगढ़ को पंजाब को देने की बात कही गई थी, लेकिन निर्णय अब तक अटका हुआ है।
क्यों बढ़ सकती है हलचल?
विधेयक पारित होने के बाद चंडीगढ़ एक पूर्ण केंद्र शासित प्रदेश की तरह राष्ट्रपति के अधीन आ जाएगा, जिससे पंजाब का प्रशासनिक प्रभाव समाप्त हो सकता है। यही कारण है कि पंजाब की सभी प्रमुख पार्टियां एक स्वर में इसका विरोध कर रही हैं और इसे ऐतिहासिक अधिकार का हनन बता रही हैं।
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