हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
1: संसद की चाय और कांग्रेस की नई तस्वीर
संसद सत्र के समापन के बाद होने वाली पारंपरिक चाय पे चर्चा इस बार महज औपचारिक नहीं रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष के साथ अग्रिम पंक्ति में बैठीं पहली बार सांसद बनीं प्रियंका गांधी वाड्रा ने राजनीतिक गलियारों में नई बहस छेड़ दी। खास बात यह रही कि कांग्रेस में किसी औपचारिक संसदीय पद पर न होने के बावजूद प्रियंका को प्रमुख स्थान मिला, जबकि एनसीपी की वरिष्ठ नेता सुप्रिया सुले उनसे पीछे बैठीं नजर आईं। इस दौरान प्रियंका और प्रधानमंत्री मोदी के बीच उनके संसदीय क्षेत्र वायनाड को लेकर शालीन बातचीत भी हुई, जिसने राजनीतिक संकेतों को और गहरा कर दिया।

राहुल की अनुपस्थिति, प्रियंका की सक्रियता
जहां राहुल गांधी अक्सर ऐसी अनौपचारिक बैठकों से दूरी बनाए रखते हैं, वहीं प्रियंका गांधी की मौजूदगी ने उनकी राजनीतिक समझ और आत्मविश्वास को उजागर किया। सीएनएन न्यूज-18 की रिपोर्ट के मुताबिक, राहुल गांधी की गैरमौजूदगी में प्रियंका ने इस शीतकालीन सत्र में प्रभावी ढंग से संसदीय कमान संभाली। वह रोज सुबह समय पर संसद पहुंचीं, मीडिया से संवाद में सक्रिय रहीं और यह सुनिश्चित किया कि कांग्रेस की आवाज सदन और बाहर दोनों जगह सुनी जाए।
‘बिग टेंट’ अप्रोच और बागी नेताओं की वापसी
सूत्रों के अनुसार, प्रियंका गांधी ने पार्टी के भीतर समावेशी ‘बिग टेंट’ रणनीति अपनाने की पहल की। इसका मकसद उन नेताओं को फिर से सक्रिय करना था, जो पिछले कुछ समय से हाशिये पर थे। इसी रणनीति के तहत मनीष तिवारी और शशि थरूर जैसे अनुभवी नेताओं को प्रमुख बहसों में आगे लाया गया। मनीष तिवारी ने SHANTI विधेयक सहित कई अहम मुद्दों पर मुखरता से बात रखी, वहीं शशि थरूर ने VB-G RAM G बिल और नेशनल हेराल्ड मामले में विरोध प्रदर्शनों में सक्रिय भूमिका निभाई।
सोनिया गांधी की छवि की झलक
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि प्रियंका का यह संतुलित और संवादपरक रवैया उनकी मां सोनिया गांधी की राजनीतिक शैली की याद दिलाता है। वह मतभेदों को सार्वजनिक टकराव बनने से पहले ही संभालने की कोशिश करती दिखीं। लोकसभा में भी उन्होंने वंदे मातरम् जैसे संवेदनशील मुद्दे पर प्रधानमंत्री को घेरते हुए संयम, दृढ़ता और हल्के हास्य का संतुलन साधा।
बीजेपी और कांग्रेस के भीतर बढ़ती चर्चाएं
बीजेपी खेमे में भी यह धारणा बन रही है कि प्रियंका गांधी राहुल गांधी की तुलना में ज्यादा संतुलित और जटिल राजनीतिक चुनौती पेश कर सकती हैं। वहीं कांग्रेस के भीतर शीतकालीन सत्र के बाद दो पावर सेंटर की चर्चा तेज हो गई है। माना जा रहा है कि राहुल गांधी वैचारिक और जन-आंदोलनों का चेहरा बने रहेंगे, जबकि रणनीति, संवाद और रोजमर्रा के राजनीतिक प्रबंधन की जिम्मेदारी धीरे-धीरे प्रियंका गांधी के हाथों में जा सकती है।













