हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: 30 अप्रैल: 2025,
1951 से हर 10 साल में होने वाली जनगणना 2021 में कोरोना महामारी के कारण टाल दी गई थी। अब केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए घोषणा की है कि आगामी जनगणना के साथ ही जातिगत जनगणना भी कराई जाएगी।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव का बयान
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मंत्रिमंडल बैठक के बाद कहा, “राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने फैसला लिया है कि जातिगत गणना को अगली जनगणना में शामिल किया जाएगा।” उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने जातिगत जनगणना को केवल राजनीतिक औजार के रूप में इस्तेमाल किया और कभी गंभीरता नहीं दिखाई।
जातिगत जनगणना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- आज़ादी के बाद से अब तक जनगणना में जाति का विवरण नहीं लिया गया है।
- 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इसे कैबिनेट में लाने की बात कही थी, लेकिन अंततः केवल एक सीमित सर्वे कराकर मामला टाल दिया गया।
- इसके विपरीत, अब केंद्र सरकार ने औपचारिक जनगणना में जातिगत आंकड़ों को शामिल करने का निर्णय लिया है।
क्यों जरूरी है जातिगत जनगणना?
- जातिगत आंकड़े सरकार को नीति निर्धारण, कल्याणकारी योजनाओं का निर्माण, और संसाधनों के समान वितरण में मदद करेंगे।
- इससे OBC वर्ग की वास्तविक जनसंख्या का पता चल सकेगा, जो लंबे समय से अज्ञात बनी हुई है।
राज्यों में हुए सर्वे और उनकी सीमाएं
कई राज्यों ने अपने स्तर पर जाति आधारित सर्वेक्षण किए हैं, लेकिन केंद्रीय मंत्री के अनुसार ये सर्वे राजनीतिक दृष्टिकोण से पक्षपातपूर्ण और अपारदर्शी रहे हैं। इससे सामाजिक भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई।
जनगणना: एक संवैधानिक विषय
जनगणना संविधान के अनुच्छेद 246 की केंद्रीय सूची में सूचीबद्ध विषय है। इसका मतलब है कि इसे केवल केंद्र सरकार ही करा सकती है। इसी आधार पर सरकार अब जातिगत गणना के लिए एक समग्र मंच तैयार करने की दिशा में बढ़ रही है।
जनगणना की नवीनतम स्थिति
- 2021 की जनगणना महामारी के कारण नहीं हो पाई।
- राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को भी अभी अपडेट नहीं किया गया है।
- सूत्रों के अनुसार, जनगणना के आंकड़े 2026 में जारी किए जा सकते हैं, जिससे अब जनगणना चक्र 2025-2035 और फिर 2035-2045 के अनुसार बदलेगा।
भारत में जनगणना का इतिहास
- पहली जनगणना: 1872
- आजादी के बाद पहली जनगणना: 1951
- आखिरी जनगणना: 2011
- 2011 में भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़, लिंगानुपात 940 महिलाएं प्रति 1000 पुरुष, और साक्षरता दर 74.04% थी।
निष्कर्ष: सामाजिक न्याय की दिशा में एक कदम
जातिगत जनगणना का यह निर्णय सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता, और पारदर्शी प्रशासन की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। इससे भविष्य की योजनाओं को सामाजिक हकीकतों के आधार पर तैयार किया जा सकेगा।