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दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला: नाबालिग बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ने वाली मां को भरण-पोषण से नहीं किया जा सकता वंचित

हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: 14 मई : 2025,

नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि कोई शिक्षित महिला अपने नाबालिग बच्चे की अकेले देखभाल के लिए नौकरी छोड़ती है और उसे पारिवारिक सहयोग नहीं मिल रहा है, तो इसे त्याग माना जाएगा, न कि कामचोरी या आलस्य। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिर्फ पढ़ी-लिखी होने या पहले काम करने के आधार पर किसी महिला को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता।

यह फैसला जस्टिस स्वर्णा कांत शर्मा की एकल पीठ ने उस याचिका पर सुनाया, जिसमें एक पति ने फैमिली कोर्ट के अंतरिम भरण-पोषण के आदेश को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता पति का दावा था कि उसकी पत्नी शिक्षित है, पहले एक स्कूल में पढ़ा चुकी है और ट्यूशन से भी अच्छी कमाई करती थी। इसलिए उसे भरण-पोषण की ज़रूरत नहीं है।

पत्नी की मजबूरी, नहीं कोई आलस्य

इस पर पत्नी ने कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा कि वह अपने नाबालिग बेटे की एकल देखभालकर्ता है। उसे किसी तरह का पारिवारिक सहयोग नहीं मिल रहा और आसपास उपयुक्त नौकरी भी नहीं है। लंबी दूरी की यात्रा और बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए उसने नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया।

कोर्ट ने मां के त्याग को सराहा

हाईकोर्ट ने मां की स्थिति को गंभीरता से लेते हुए कहा कि नाबालिग बच्चे की देखभाल उस माता-पिता की प्राथमिक जिम्मेदारी होती है जिसके पास उसकी कस्टडी होती है। जब एक मां अकेले यह ज़िम्मेदारी निभा रही हो, तो नौकरी छोड़ना उसका त्याग माना जाएगा, न कि नीयत की कमी।

जस्टिस शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट के ‘राजनीश बनाम नेहा’ फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जब एक महिला अपने बच्चों या बुजुर्गों की देखभाल के लिए अपने करियर से समझौता करती है, तो यह एक महत्वपूर्ण न्यायिक पहलू बन जाता है।

पति की आय की सही जांच नहीं हुई

कोर्ट ने यह भी पाया कि पति की आय का सही आकलन फैमिली कोर्ट में नहीं हुआ। वह एक वकील है, लेकिन उसके बैंक स्टेटमेंट और आय संबंधी हलफनामे की ठीक से जांच नहीं की गई। इस वजह से हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत को निर्देश दिए कि वह इस मामले पर दोबारा विचार करे।

अंतरिम भरण-पोषण जारी रहेगा

हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी उस अवधि में भरण-पोषण की हकदार नहीं थी जब वह काम कर रही थी। लेकिन नौकरी छोड़ने के बाद वह इस सहायता की पात्र है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि जब तक मामले में अंतिम निर्णय नहीं आ जाता, पति को अंतरिम भरण-पोषण देना होगा।

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