हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: 20 अप्रैल: 2025,
बीमारी के बाद राहत की जगह नई मानसिक पीड़ा
दिल्ली हाईकोर्ट ने अस्पताल से छुट्टी के समय मरीजों को होने वाली मानसिक पीड़ा और बीमा बिलों में देरी की समस्या पर कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार के साथ-साथ बीमा कंपनियों को निर्देश दिए हैं कि वे बिल निपटारे की प्रक्रिया को तत्काल, पारदर्शी और निष्पक्ष बनाएं।
अदालत की कड़ी चेतावनी: हस्तक्षेप के लिए बाध्य होना पड़ेगा
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने स्पष्ट किया कि अगर यह प्रक्रिया सुधारने के लिए सरकारें और बीमा कंपनियां तत्परता नहीं दिखातीं, तो अदालत को हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यह समस्या कोई नया दर्द नहीं है, बल्कि इलाज के बाद का एक आम और गंभीर अनुभव बन चुकी है।
क्या है मामला?
यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई के दौरान आई जिसमें वकील शशांक गर्ग ने आरोप लगाया कि वर्ष 2013 में दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में उनकी सर्जरी के दौरान उन्हें कैशलेस बीमा योजना के तहत कवर होने के बावजूद ₹1.73 लाख की एडवांस राशि जमा करनी पड़ी।
बीमा कंपनी ने बाद में दावा किया कि उसने पूरी राशि का भुगतान किया, लेकिन अस्पताल ने यह कहते हुए ₹53,000 काट लिए कि उसे पूरी राशि नहीं मिली। याचिकाकर्ता ने इसे धोखाधड़ी बताते हुए आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की थी।
याचिका खारिज, लेकिन मुद्दा बना रहा गंभीर
कोर्ट ने सबूतों के अभाव में याचिका खारिज कर दी, पर इस मुद्दे को एक व्यापक सामाजिक समस्या मानते हुए गहरी चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि पिछले वर्षों में इस मुद्दे पर कई नीतिगत सुझाव दिए गए, जिनमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा प्रस्तावित मरीज अधिकार चार्टर भी शामिल है। इसके बावजूद कोई ठोस नियामक प्रणाली आज तक लागू नहीं हो सकी।
सरकार को ठोस कदम उठाने का निर्देश
अदालत ने कहा कि सरकारों को अब सुझावों तक सीमित न रहकर तत्काल प्रभावी कदम उठाने होंगे। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अस्पताल, बीमा कंपनियां और मरीजों के बीच बिल और भुगतान की प्रक्रिया स्पष्ट, त्वरित और निष्पक्ष हो।