बुटा सिंह,
सहायक आचार्य,
ग्रामीण विकास विभाग,
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली
हिन्दुस्तान मिरर न्यूज: 24 अगस्त 2025
भारत में “गांव शहर हो रहा है” की अवधारणा सिर्फ एक मुहावरा नहीं, बल्कि एक हकीकत है जो देश के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को लगातार बदल रही है। दशकों से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच की गहरी खाई अब धीरे-धीरे पट रही है, और गांव तेजी से शहरीकरण की विशेषताओं को अपना रहे हैं। यह एक बहुआयामी प्रक्रिया है जिसके अपने फायदे और चुनौतियां हैं।
शहरीकरण की ओर बढ़ते कदम
गांवों के शहरीकरण के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं:
- बुनियादी ढांचे का विकास: सड़कें, बिजली, पानी और इंटरनेट जैसी मूलभूत सुविधाओं का विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों तक हो रहा है। इससे गांवों में जीवनयापन आसान हो रहा है और वे शहरों से बेहतर तरीके से जुड़ पा रहे हैं।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार: गांवों में स्कूल, कॉलेज और स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या बढ़ रही है, जिससे ग्रामीणों को बेहतर शिक्षा और चिकित्सा सेवाएं मिल रही हैं। इससे उन्हें शहरों की ओर पलायन करने की आवश्यकता कम महसूस होती है।
- आर्थिक अवसर: कृषि पर निर्भरता कम हो रही है और ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे उद्योग, व्यावसायिक प्रतिष्ठान और सेवा क्षेत्र के अवसर बढ़ रहे हैं। मनरेगा जैसी योजनाएं भी ग्रामीण आय को बढ़ाने में मदद कर रही हैं।
- सूचना और प्रौद्योगिकी का प्रभाव: स्मार्टफोन और इंटरनेट की पहुंच ने ग्रामीणों को दुनिया से जोड़ा है। वे शहरी जीवनशैली, व्यावसायिक अवसरों और उपभोक्तावाद से अवगत हो रहे हैं, जिससे उनकी आकांक्षाएं बदल रही हैं।
- प्रवासन का दोहरा प्रभाव: शहरों से लौटकर आने वाले लोग अपने साथ शहरी संस्कृति, जीवनशैली और व्यावसायिक विचारों को वापस गांवों में लाते हैं। वहीं, कुछ गांवों के करीब स्थित होने के कारण शहरीकरण की लहर का सीधा अनुभव करते हैं। बदलती जीवनशैली और संस्कृति
यह शहरीकरण सिर्फ भौतिक बदलाव नहीं ला रहा, बल्कि ग्रामीण जीवनशैली और संस्कृति में भी बड़ा परिवर्तन कर रहा है:
- पारंपरिक व्यवसायों में कमी: कृषि से हटकर लोग अब नौकरी, व्यापार या अन्य सेवाओं की ओर रुख कर रहे हैं।
- उपभोक्तावाद का बढ़ता प्रभाव: शहरी बाजारों की तर्ज पर गांवों में भी मॉल, सुपरमार्केट और ब्रांडेड उत्पादों की मांग बढ़ रही है।
- सामाजिक संरचना में बदलाव: संयुक्त परिवार टूटकर एकल परिवारों में बदल रहे हैं। जाति व्यवस्था का प्रभाव भी कुछ हद तक कम हो रहा है।
- आधुनिक पहनावा और मनोरंजन: पारंपरिक वेशभूषा की जगह आधुनिक कपड़े ले रहे हैं, और मनोरंजन के साधन भी शहरी पैटर्न पर आधारित हो रहे हैं।
- डिजिटल साक्षरता: ग्रामीण लोग अब ऑनलाइन भुगतान, सोशल मीडिया और डिजिटल सेवाओं का अधिक उपयोग कर रहे हैं। फायदे और चुनौतियां
“गांव शहर हो रहा है” की इस प्रक्रिया के अपने फायदे और नुकसान हैं:
फायदे :
- बेहतर जीवन स्तर: ग्रामीणों को बेहतर सुविधाएं, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मिल रही हैं, जिससे उनका जीवन स्तर सुधर रहा है।
- आर्थिक विकास: नए व्यवसायों और उद्योगों के आने से गांवों में आर्थिक गतिविधियां बढ़ रही हैं और रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं।
- ज्ञान और सूचना तक पहुंच: इंटरनेट और मीडिया के माध्यम से ग्रामीण लोग अधिक जागरूक और सूचित हो रहे हैं।
- पलायन में कमी: गांवों में बेहतर अवसरों के कारण शहरी क्षेत्रों की ओर होने वाला पलायन कुछ हद तक कम हो सकता है। चुनौतियां:
- पर्यावरणीय समस्याएं: शहरीकरण के साथ प्रदूषण, कचरा प्रबंधन और प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ सकता है।
- कृषि का ह्रास: कृषि भूमि का गैर-कृषि उपयोग में बदलना खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है।
- सामाजिक असंतुलन: शहरीकरण से अपराध, तनाव और सामाजिक विघटन जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं।
- पहचान का संकट: गांवों की अपनी अनूठी संस्कृति और पहचान खोने का डर बना रहता है।
- आधारभूत ढांचे पर दबाव: तेजी से बढ़ते शहरीकरण के साथ पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराना एक चुनौती हो सकती है। भविष्य की दिशा
“गांव शहर हो रहा है” एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन इसे एक स्थायी और समावेशी तरीके से प्रबंधित करना महत्वपूर्ण है। सरकार, स्थानीय निकायों और समुदायों को मिलकर काम करना होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ग्रामीण विकास शहरीकरण की चुनौतियों से निपटने के साथ-साथ गांवों की अपनी मौलिकता और पहचान को भी बनाए रखे। संतुलित विकास, पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण समुदायों की भागीदारी ही इस बदलाव को सही मायने में प्रगतिशील बना सकती है।