हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
अनिल अंबानी, जो कभी दुनिया के शीर्ष उद्योगपतियों में गिने जाते थे, आज अपनी ही स्थापित कंपनियों से दूरी बनाते दिख रहे हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ED), सेबी (SEBI) और अन्य जांच एजेंसियों की कार्रवाईयों के बीच उन्होंने रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर और रिलायंस पावर के बोर्ड और प्रबंधन से खुद को अलग कर लिया है। रिलायंस ग्रुप के प्रवक्ता ने साफ किया कि अंबानी अब कंपनियों के रोजमर्रा के कामकाज में शामिल नहीं हैं और 2007 से 2022 तक वे केवल गैर-कार्यकारी निदेशक थे। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम कंपनियों को किसी भी नियामकीय कार्रवाई के प्रभाव से बचाने की रणनीति का हिस्सा है।
ED द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग और FEMA उल्लंघन की जांच के दौरान दो बार बुलाए जाने के बाद ग्रुप द्वारा यह ‘दूरी’ और अधिक स्पष्ट हो गई। कई मामलों में ग्रुप ने सफाई देकर यह बताने की कोशिश की है कि अनिल अंबानी की भूमिका अब कंपनियों से अलग है। कर्ज और संकट के कारण उनका व्यावसायिक साम्राज्य ताश के पत्तों की तरह ढहता गया। आरकॉम दिवालिया हो चुकी है, रिलायंस कैपिटल 70,000 करोड़ रुपये के कर्ज के कारण बिक गई और कई कंपनियों का नियंत्रण लेनदारों के हाथ में चला गया।
शेयर बाजार में भी इसका असर साफ दिख रहा है। इस वर्ष रिलायंस इंफ्रा में करीब 44% और रिलायंस पावर में 10% से अधिक गिरावट दर्ज की गई। अनिल अंबानी की कोशिश है कि उनकी व्यक्तिगत कानूनी मुश्किलों का असर कंपनियों पर न पड़े। हालांकि, निवेशकों का भरोसा कमजोर पड़ा है और बार-बार की जांचें स्थिति को और कठिन बना रही हैं।
आज सवाल यह है कि क्या अनिल अंबानी इस संकट से उबर पाएंगे? कभी 70 गुना सब्सक्रिप्शन पाने वाले रिलायंस पावर के आईपीओ का जादू अब फीका पड़ चुका है। फिलहाल उनका रुख यह संकेत देता है कि वे कंपनियों को बचाने के लिए खुद को पीछे कर चुके हैं। आने वाला समय बताएगा कि यह रणनीति उनके डूबते साम्राज्य को संभाल पाएगी या यह एक अंतिम मोड़ की शुरुआत है।













