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“सिर्फ लाल किला क्यों? ताजमहल और फतेहपुर सीकरी क्यों नहीं?” – सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: 5 मई : 2025, दिल्ली

सुल्ताना बेगम नामक एक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर यह दावा किया कि वह अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर II के परपोते की विधवा हैं और लाल किला उनके पूर्वजों की संपत्ति थी, जिसे ब्रिटिश सरकार ने जबरन हड़प लिया था। उन्होंने इस ऐतिहासिक किले पर दावा जताते हुए भारत सरकार से कब्जे की वापसी और मुआवजे की मांग की थी।

कोर्ट की तीखी टिप्पणी: ‘सिर्फ लाल किला क्यों, ताजमहल और फतेहपुर सीकरी क्यों नहीं?’

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संयज कुमार की बेंच ने याचिका को पूरी तरह से “ग़लत” बताया और खारिज कर दिया। कोर्ट ने तंज कसते हुए पूछा कि अगर याचिकाकर्ता मुगल वंशज होने का दावा कर रही हैं, तो उन्होंने केवल लाल किले पर ही दावा क्यों किया? ताजमहल और फतेहपुर सीकरी भी तो मुगलों द्वारा बनवाए गए थे।

हाईकोर्ट ने देरी के आधार पर खारिज की थी याचिका

सुल्ताना बेगम ने यह याचिका सबसे पहले साल 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की थी। हालांकि, याचिका पर फैसला आने में लगभग ढाई साल लग गए और इसके 900 दिन बाद वह डिवीजन बेंच के पास पहुंचीं। हाईकोर्ट की जस्टिस विभू बाकरू और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने याचिका को अत्यधिक देरी के कारण खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलील ठुकराई

सुल्ताना बेगम के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में यह दलील दी कि हाईकोर्ट ने याचिका को गुण-दोष पर नहीं बल्कि देरी के आधार पर खारिज किया था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट को भी वही आधार मानना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को मानने से इनकार कर दिया और कहा कि यह याचिका पूरी तरह निराधार है।

इतिहास का हवाला: ‘अंग्रेजों ने छीन लिया था किला’

याचिकाकर्ता का दावा है कि 1857 की क्रांति के समय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके परिवार की संपत्ति को जबरन छीन लिया था। बहादुर शाह जफर को निर्वासित कर दिया गया और लाल किले पर ब्रिटिश हुकूमत ने कब्जा कर लिया। उनका कहना है कि आजादी के बाद भारत सरकार ने भी यह कब्जा बरकरार रखा है, जो गलत है।

हाईकोर्ट ने सवाल उठाया: 164 साल बाद कैसे हुई याचिका विचारणीय?

हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने 2021 के फैसले में टिप्पणी की थी कि मान लें कि बहादुर शाह जफर से लाल किला अवैध रूप से छीना गया था, तो भी याचिकाकर्ता के पूर्वजों को इस घटना की जानकारी लंबे समय से थी। ऐसे में 164 साल बाद दाखिल की गई याचिका कैसे स्वीकार की जा सकती है?

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