हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि किसी विवाहिता की मौत को केवल इस आधार पर दहेज हत्या या क्रूरता नहीं माना जा सकता कि वह रो रही थी। अदालत ने पति और उसके परिवार को बरी किए जाने के निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए पीड़िता के पिता की याचिका को खारिज कर दिया।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बेंच ने स्पष्ट किया कि मृतका की बहन का बयान, जिसमें उसने कहा था कि उसने होली पर फोन किया और बहन को रोते हुए पाया, अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। अदालत ने कहा कि किसी महिला का रोना सीधे तौर पर दहेज उत्पीड़न या प्रताड़ना का सबूत नहीं माना जा सकता।
याचिका में मृतका के पिता ने आरोप लगाया था कि शादी के बाद से ही पति और ससुराल पक्ष अतिरिक्त दहेज की मांग कर रहे थे। जब मांगें पूरी नहीं हुईं तो उनकी बेटी को मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रताड़ित किया गया, जिससे उसकी मृत्यु हुई। हालांकि अदालत ने इस दावे को सबूतों के अभाव में खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में मृतका की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि उसकी मृत्यु निमोनिया के कारण हुई थी। ऐसे में इसे दहेज हत्या या क्रूरता से जोड़ना न्यायसंगत नहीं होगा।
अदालत ने यह भी कहा कि आपराधिक मामलों में ठोस सबूतों की आवश्यकता होती है। केवल भावनात्मक पहलुओं या अनुमान के आधार पर किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस आधार पर अदालत ने पति और उसके परिवार के खिलाफ सभी आरोपों को निराधार मानते हुए याचिका को खारिज कर दिया।
यह फैसला दहेज उत्पीड़न और हत्या से जुड़े मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है कि भावनात्मक स्थितियों को कानूनी सबूत के रूप में नहीं लिया जा सकता और केवल ठोस प्रमाणों के आधार पर ही सजा दी जा सकती है।