सीपी सिंह। हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
तालिबान अथार्त अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी पहली बार भारत में सात दिन के दौरे पर आए हैं तो उनका खासा गर्मजोशी से इस्तकबाल किया गया। यह इस्तकबाल दिल्ली तक ही नहीं बल्कि इस्लामिक शिक्षा के मशहूर केन्द्र देवबंद दारूल उलूम में भी जोरदार खैरमकदम हुआ। इसे लेकर अमेरिका और पाकिस्तान की जहां रातों की नींद हराम हो गई है, वहीं भारत-अफगानिस्तान की इस दोस्ती को पर दुनिया भर की नजर लगी हुई है। दुनिया भर की सियासत में चौंकाने वाला तथ्य यह है कि तालिबान और भारत धुर विरोधी रहे हैं। फिर दोनों के बीच दोस्ती की पींगे क्यों बढ़ रही हैं। लेकिन सवाल उठता है कि भारत और तालिबान की दोस्ती क्या अमेरिका और पाकिस्तान को सबक सिखाने की तैयारी तो नहीं हैं?
भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते कैसे रहे, इसके लिए पहले अतीत के झरोखे में झांक लेते हैं। चार साल पहले 15 अगस्त 2021 को अफगानिस्तान पर तालिबानियों ने कब्जा कर लिया। उधर भारत ने तालिबानी सत्ता के विरोध में काबुल में स्थित अपना दूतावास भी बंद कर दिया था। बात इससे पहले 1980 की करें तो हालात इससे भी बिषम थे। अफगानिस्तान में सोवियत यूनियन की सेना उतर गई थी। कई मुजाहिद ग्रुप सेना के खिलाफ लड़ रहे थे। खास बात यह है कि इन मुजाहिदीनों को भारत के धुर विरोधी पाकिस्तान से मदद मिल रही थी। इस तरह लगातार जारी युद्ध के बाद तालिबान 1996 में एक बार फिर अफगानिस्तान में काबिज हो गया। इसके बाद भारत ने तालिबानी सत्ता के विरोध में अपना दूतावास बंद कर दिया था। मामला यहीं नहीं थमा। सबसे बड़ी वारदात 1999 में हुई। इंडियन एयर लाइंस की नेपाल के काठमांडू से दिल्ली जा रहे विमान को पाकिस्तान के आतंकवादियों ने हाईजैक कर लिया। आतंकवादी उसे अपने सबसे भरोसेमंद देश अफगानिस्तान के कंधार ले गए थे। भारत के विमान हाईजैक में उस समय की तालिबानी सरकार का पूरा समर्थन प्राप्त था। यहीं कारण रहा कि भारत चाहकर भी कंधार में आतंकवादियों के खिलाफ कोई भी सैन्य कार्रवाई नहीं कर सका था।
तालिबानों का भारत के विरोध का सिलसिला यहीं नहीं थमा। 2001 में तालिबानी नेता मुल्ला मोहम्मद उमर ने बामियान में बुद्ध प्रतिमाओं पर तोप के गोले चलवाए थे। तालिबान की इस कार्रवाई के खिलाफ भारत ने काफी आक्रोश व्यक्त किया था। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि भारत इस तालिबान के इस कृत्य के खिलाफ इंटरनेशनल कोर्ट तक भी गया था। अमेरिका और नाटो सेनाओं 2001 में ही एक बार अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता का खात्मा कर दिया। इसके बाद भारत ने अपना दूतावास एक बार फिर अफगानिस्तान में शुरू कर दिया। लेकिन वक्त ने एक बार फिर पलटा मारा। तालिबानी विद्रोह के चलते अमेरिका की सेना ने अचानक वापसी कर दी। इसके बाद तालिबानी सरकार एक बार फिर अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज हो गई। भारत ने इसके विरोध के चलते एक बार फिर अपना दूतावास बंद कर दिया था।
भारत के मानवीय दृष्टिकोण ने पलटी बाजी
2021 में तालिबानी उपद्रव के बाद भले ही उन्होंने अमेरिकी से सत्ता कब्जा ली, लेकिन अफगानिस्तान के आथिर्क हालात खासे जर्जर हो चुके थे। इस दौरान तमाम गले-शिकवे भुलाकर भारत ने तालिबानों के खिलाफ मानवीय दृष्टिकोण अपनाया। भारत ने अफगानिस्तान को 27 टन रिलीफ सामग्री भेजी। इसका जिक्र भारत आए अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने खुले दिल किया है। उधर तालिबान पहले से ही अमेरिका से खफा था, वहीं पाकिस्तान की हरकतें भी उन्हें नापसंद लगने लगीं। दिसंबर 2024 में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान पर ऐयर स्ट्राइक कर दी। इस हरकत से तालिबानियों के सामने पाकिस्तान का असली चेहरा सामने आ गया। वहीं भारत ने तालिबान का पक्ष लेते हुए पाकिस्तान की कड़ी निंदा की थी। इसी बीच अप्रैल 2025 में पाकिस्तान के आतंकवादियों ने कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों की गोली चलाकर हत्या कर दी। इस हमले के बाद भारत का एक प्रतिनिधिमंडल अफगानिस्तान गया था। इसी दौरान ही अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मुत्तकी ने भारत के विदेश मंत्री से बात कर पाकिस्तान की कड़ी निंदा की थी।
दोस्ती से दोनों देशों को होगा फायदा
एक ओर जहां भारत ने अफगानिस्तान से दोस्त का हाथ बढ़ाकर जहां पाकिस्तान और अमेरिका को मैसेज देने का प्रयास किया है। क्योंकि पाकिस्तान से तो अपने जन्म से ही भारत का जानी दुश्मन रहा है, लेकिन पिछले कुछ महीनों से अमेरिका ने भी पाकिस्तान को गोद में बैठा लिया है। भारत पर 50 फीसदी टैरिफ का इसका खासा उदाहरण हैं। उधर अमेरिका अफगानिस्तान का पहले से जानी दुश्मन है, वहीं पाकिस्तान भी अमेरिका के पाले में हैं तो तालिबानी सरकार ने भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाकर दोनों देशों को सबक सिखाने का मैसेज पास किया है। इसके साथ ही अन्य आथिर्क और कारोबारी फायदे भी दोनों देशों के होंगे। भारत जहां अफगानिस्तान में थैलेसीमिया सेंटर, 30 बैड का अस्पताल, कैंसर सेंटर व ट्रामा सेंटर आदि कई चिकित्सा क्षेत्र में सहयोग देगा, वहीं भारत भी अफगानिस्तान के खनिज और एनर्जी सेक्टर से फायदा लेगा। अफगानिस्तान में लीथियम, कापर और रेयर अर्थ मिनरल आदि भारी मात्रा में पाया जाता है। इनसे भारत तकनीकि क्षेत्र में खासा मजबूत हो सकता है। गौर करने वाली बात तो यह है कि अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मुत्तकी ने दिल्ली में की गई पत्रकार वार्ता में बगैर किसी लाग-लपेट के भारत को करीबी दोस्त बताया। यह भी कहा कि अफगानिस्तान के मुश्किल वक्त में भारत साथ खड़ा रहा। अब देखना है कि भारत और अफगानिस्तान की दोस्ती आने वाले समय में क्या करवट लेती है, सब जल्द ही साफ हो जाएगा













