हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में एक व्यक्ति को रेप के आरोप से बरी कर दिया, जिसे निचली अदालत ने 10 साल की सजा सुनाई थी। यह मामला एक नाबालिग लड़की से जुड़ा है, जिसने अपने रिश्ते के भाई पर शादी का झूठा वादा करके एक साल तक शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाया था।
जस्टिस मनोज कुमार ओहरी ने 17 अक्टूबर 2025 को अपने आदेश में कहा कि ‘शारीरिक संबंध बनाने’ जैसे सामान्य शब्द का उपयोग बलात्कार या गंभीर यौन उत्पीड़न साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष ने अपराध को संदेह से परे साबित नहीं किया।
हाई कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दोषसिद्धि को बनाए रखना उचित नहीं होगा। कोर्ट ने इस मामले को “दुर्भाग्यपूर्ण” बताया और कहा कि अभियोजन पक्ष व निचली अदालत ने पीड़िता से आवश्यक तथ्यात्मक सवाल नहीं पूछे, जिससे घटना की वास्तविकता स्पष्ट हो पाती।
मामले के रिकॉर्ड में कोई फॉरेंसिक या ठोस सबूत नहीं मिला। पूरा मामला पीड़िता और उसके माता-पिता की मौखिक गवाही पर आधारित था। न्यायालय ने कहा कि केवल सामान्य शब्दों और आरोपों के आधार पर किसी व्यक्ति को दोषी ठहराना न्यायसंगत नहीं है। इस आधार पर आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।













