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देवउठनी एकादशी 2025:
हिंदू धर्म में देवउठनी या देवप्रबोधिनी एकादशी का विशेष महत्व है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक की अवधि ‘चातुर्मास’ कहलाती है, जिसमें सभी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन, उपनयन आदि वर्जित रहते हैं, क्योंकि यह समय देवताओं के विश्राम का होता है।
चातुर्मास की समाप्ति और शुभता का आरंभ
देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु के जागरण के साथ सृष्टि में पुनः शुभ ऊर्जा का प्रवाह होता है। इसी कारण इस दिन से विवाह, गृहप्रवेश और सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत शुभ मानी जाती है। यह पर्व देवशयन काल की समाप्ति और शुभ समय की पुनः शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन अत्यंत मंगलकारी माना गया है। यह विवाह भगवान विष्णु (शालिग्राम) और देवी तुलसी के पवित्र मिलन का प्रतीक है। धार्मिक मान्यता है कि इस विवाह से घर में सुख, समृद्धि और सौभाग्य का वास होता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से महत्व
देवउठनी एकादशी का व्रत करने से विष्णु भक्तों को पापों से मुक्ति और जीवन में सुख-शांति प्राप्त होती है। भक्त इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी माता की पूजा करते हैं और शालिग्राम को तुलसी के साथ विवाह कराते हैं। यह दिन न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी नव आरंभ का प्रतीक है। इसलिए हिंदू समाज में विवाह और अन्य शुभ कार्यों की शुरुआत इसी दिन से की जाती है।













