हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़ ✑17 मई : 2025
अलीगढ़/ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की पहली महिला कुलपति प्रोफेसर नईमा खातून की नियुक्ति को लेकर चल रहे विवाद पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बड़ा फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने उनकी नियुक्ति को पूरी तरह वैध ठहराते हुए इस पर सवाल उठाने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है।
खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रो. खातून की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया एएमयू अधिनियम, संबंधित विनियमों और प्रावधानों के पूर्ण अनुपालन में संपन्न हुई। न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि इस प्रक्रिया में कोई पक्षपात या अनुचित हस्तक्षेप नहीं हुआ।
याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क दिया था कि प्रो. खातून के पति, प्रो. मोहम्मद गुलरेज़ ने कार्यवाहक कुलपति के रूप में चयन प्रक्रिया के दौरान कुछ बैठकों की अध्यक्षता की थी, जिससे निष्पक्षता प्रभावित हो सकती थी। परंतु न्यायालय ने इस आपत्ति को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि प्रो. गुलरेज़ केवल औपचारिक भूमिका में थे और उन्होंने चयन प्रक्रिया को प्रभावित नहीं किया।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कुलपति की नियुक्ति का अंतिम निर्णय भारत के राष्ट्रपति द्वारा, जो विश्वविद्यालय के विज़िटर होते हैं, किया गया था। यह निर्णय उनके विवेकाधिकार के अंतर्गत लिया गया, और उस पर पक्षपात या अनुचित प्रभाव का कोई प्रमाण नहीं मिला।
न्यायालय ने प्रोफेसर नईमा खातून की योग्यता, अनुभव और पात्रता को निर्विवाद माना और यह कहा कि उनके चयन पर सवाल उठाने का कोई ठोस आधार प्रस्तुत नहीं किया गया। लिहाजा, उनकी नियुक्ति को रद्द करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
फैसले के बाद प्रतिक्रिया देते हुए प्रो. नईमा खातून ने कहा:
“मुझे हमेशा भारत की न्यायपालिका की स्वतंत्रता, गरिमा और निष्पक्षता पर पूरा विश्वास रहा है। यह निर्णय केवल मेरे व्यक्तिगत स्तर पर न्याय नहीं है, बल्कि हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों की संस्थागत प्रक्रियाओं और लोकतांत्रिक मूल्यों की पुष्टि भी है।”
उन्होंने आगे कहा कि वे एएमयू की सेवा “पूरी निष्ठा, पारदर्शिता और समावेशी शैक्षणिक उत्कृष्टता के संकल्प के साथ करती रहेंगी।” उन्होंने आशा जताई कि यह निर्णय उच्च शिक्षा क्षेत्र में निष्पक्षता और प्रगति के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।