हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: 14 मई : 2025,
नई दिल्ली/इस्तांबुल
भारत-पाकिस्तान सीजफायर के बाद अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मोर्चे पर एक और बड़ी सकारात्मक खबर सामने आई है। रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग के बीच गुरुवार, 15 मई को एक ऐतिहासिक क्षण आ सकता है, जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की आमने-सामने बातचीत कर सकते हैं। यह बैठक तुर्किए (पुराना नाम तुर्की) की राजधानी इस्तांबुल में संभावित है।
6 साल बाद पहली आमने-सामने मुलाकात
अगर यह बैठक होती है, तो यह दोनों नेताओं के बीच छह सालों में पहली सीधी मुलाकात होगी। यह वार्ता वैश्विक स्तर पर शांति की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है। जानकारी के अनुसार, पुतिन ने 11 मई को यूक्रेन को सीधी बातचीत का प्रस्ताव दिया था, जिसे राष्ट्रपति जेलेंस्की ने बिना किसी शर्त के स्वीकार कर लिया है।
जेलेंस्की ने दी चुनौती, कहा – “मैं पुतिन का इंतजार करूंगा”
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने पुतिन के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए कहा, “मैं गुरुवार को तुर्किए में पुतिन का व्यक्तिगत रूप से इंतजार करूंगा।” उन्होंने आगे कहा कि वह बातचीत के दौरान 30 दिन के सीजफायर पर सहमति की उम्मीद रखते हैं, जिससे आम नागरिकों को राहत मिल सके।
पुतिन पहले ही कर चुके हैं सीजफायर प्रस्ताव खारिज
हालांकि रूस की ओर से पहले ही 30 दिन के सीजफायर प्रस्ताव को खारिज किया जा चुका है। बावजूद इसके, जेलेंस्की इस बैठक को एक नया अवसर मान रहे हैं। सूत्रों की मानें तो यूक्रेन की ओर से इस वार्ता में युद्धविराम के अलावा युद्धबंदी, मानवीय सहायता और सीमा विवाद जैसे मुद्दों को भी उठाया जा सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप का बयान आया था सामने
इस संभावित वार्ता से पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का एक बयान सुर्खियों में आया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि “पुतिन तुर्किए में जेलेंस्की से मिलना चाहते हैं, ताकि युद्ध को खत्म करने के लिए बातचीत की जा सके।” ट्रंप ने यह भी कहा था कि “यूक्रेन को इस मौके को तुरंत स्वीकार करना चाहिए, ताकि शांति की संभावना बनाई जा सके।”
क्या यह वार्ता युद्ध का अंत लाएगी?
अब सबकी निगाहें 15 मई की इस प्रस्तावित बैठक पर टिकी हैं। यदि यह वार्ता होती है और कोई ठोस सहमति बनती है, तो यह रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करने की दिशा में एक बड़ा मोड़ साबित हो सकती है। हालांकि, जानकारों का मानना है कि कई जटिल मुद्दों पर सहमति बनना अभी भी एक कठिन प्रक्रिया होगी।