हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़ ✑ 23 मई : 2025
ढाका, 23 मई 2025 — बांग्लादेश इस समय एक गंभीर राजनीतिक संकट से जूझ रहा है, जिसकी जड़ें सत्ता के गलियारों से लेकर सड़कों तक फैली हुई हैं। देश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने संकेत दिया है कि वह अपने पद से इस्तीफा देने पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने ढाका में एडवाइजरी काउंसिल की बैठक के दौरान स्पष्ट रूप से कहा कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में काम करना “लगभग असंभव” होता जा रहा है।
यूनुस ने कहा, “मैं खुद को एक बंधक की तरह महसूस कर रहा हूं।” यह बयान न केवल उनके व्यक्तिगत असंतोष को दर्शाता है, बल्कि बांग्लादेश की अस्थिर राजनीतिक व्यवस्था की विफलता की गवाही भी देता है। राजनीतिक दलों के बीच न्यूनतम सहमति भी बन पाना मुश्किल हो गया है, जिससे शासन की स्थिरता पर गहरे सवाल खड़े हो गए हैं।
म्यांमार सीमा पर मानवीय गलियारे की योजना से सैन्य असंतोष बढ़ा
मौजूदा संकट को और जटिल बना दिया है एक गुप्त समझौता, जिसे यूनुस सरकार ने अमेरिका के साथ मिलकर बांग्लादेश-म्यांमार सीमा पर एक मानवीय गलियारा स्थापित करने के लिए किया था। यह योजना सेना को विश्वास में लिए बिना आगे बढ़ाई गई, जिससे सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान नाराज हो गए।
जनरल वकार ने इस कदम को “राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा” बताया और यूनुस सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर दिसंबर 2025 तक चुनाव नहीं कराए गए, तो सेना “कड़ा कदम उठाने” के लिए स्वतंत्र होगी। यह सिविल और सैन्य शक्ति के बीच गहरे टकराव का संकेत है, जो देश को एक और राजनीतिक संकट की ओर धकेल सकता है।
विपक्ष और छात्र संगठनों का दबाव: सड़कों पर संघर्ष
उधर, यूनुस सरकार को विपक्षी दलों और छात्र संगठनों से भी कड़ा विरोध झेलना पड़ रहा है। महफूज आसिफ और खलीलुर्रहमान जैसे नेताओं को हटाने की मांग ने विरोध प्रदर्शनों को और उग्र बना दिया है। राजधानी ढाका, चिटगांव और राजशाही में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं। छात्र संगठनों ने विश्वविद्यालयों में तालाबंदी कर दी है और नागरिक समाज ने भी सरकार की आलोचना तेज कर दी है।
विरोध की मुख्य मांग है – जल्द से जल्द चुनाव कराना और अंतरिम सरकार को भंग करना। सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस जवाब नहीं आया है, जिससे जनाक्रोश और बढ़ता जा रहा है।
शेख हसीना के तख्तापलट के बाद बनी थी यूनुस सरकार
गौरतलब है कि मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार का गठन पिछले साल तब हुआ था, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना एक सैन्य तख्तापलट के बाद भारत भाग गई थीं। तब सेना ने सत्ता संभालने के बजाय यूनुस को एक ‘निष्पक्ष और अस्थायी नेतृत्व’ के रूप में प्रस्तुत किया था, जिनका कार्य था देश को अगले चुनाव तक स्थिरता प्रदान करना।
लेकिन अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि यह प्रयोग असफल रहा है। न तो देश को स्थायित्व मिल सका और न ही राजनीतिक दलों में कोई समझौता बन पाया। उल्टा, शासन प्रणाली और लोकतंत्र दोनों ही खतरे में पड़ गए हैं।
अब बड़ा सवाल यह है कि बांग्लादेश किस ओर बढ़ रहा है? क्या यूनुस सरकार इस्तीफा देगी? क्या सेना सत्ता में हस्तक्षेप करेगी? और क्या देश एक बार फिर लोकतंत्र से दूर किसी सत्तावादी ढांचे की ओर लौटेगा?
इन सवालों के जवाब आने वाले कुछ हफ्तों में सामने आएंगे, लेकिन फिलहाल इतना तय है कि बांग्लादेश एक बहुत ही संवेदनशील और नाजुक दौर से गुजर रहा है, और कोई भी गलत कदम देश को एक और बड़े संकट में झोंक सकता है।