हिन्दुस्तान मिरर न्यूज: बुधवार 02 जुलाई 2025
वॉशिंगटन में एक बड़ा भूचाल लाने वाली खबर सामने आई है। दक्षिणी कैरोलिना से रिपब्लिकन सांसद लिंडसे ग्राहम ने दावा किया है कि उन्होंने अमेरिकी संसद में एक ऐसा बिल पेश किया है, जो भारत और चीन जैसे देशों पर भारी टैरिफ लगाने की मांग करता है। उन्होंने कहा कि अगर कोई देश रूस से तेल खरीदता है और यूक्रेन की मदद नहीं करता, तो अमेरिका में उसके उत्पादों पर 500 फीसदी का टैरिफ लगाया जाएगा।
ग्राहम ने ABC न्यूज को दिए इंटरव्यू में बताया कि रूस से तेल खरीदना दरअसल उसकी “युद्ध मशीन” को ईंधन देने जैसा है। उन्होंने खासतौर पर भारत और चीन का जिक्र करते हुए कहा कि ये दोनों देश मिलकर पुतिन के तेल का 70 फीसदी हिस्सा खरीदते हैं, जिससे यूक्रेन युद्ध की आग जलती रह रही है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहली बार इस विधेयक का खुलकर समर्थन किया है। ग्राहम के मुताबिक, “कल जब हम गोल्फ खेल रहे थे, तब ट्रंप ने मुझसे कहा कि अब समय आ गया है कि इस बिल को आगे बढ़ाया जाए।” यह बयान ऐसे समय पर आया है जब भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील को लेकर अहम बातचीत चल रही है।
इस बिल को ग्राहम के साथ डेमोक्रेटिक सीनेटर रिचर्ड ब्लूमेंथल ने सह-प्रायोजित किया है। शुरू में इसे मार्च में पेश किया गया था, लेकिन उस समय व्हाइट हाउस ने इसके कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई थी क्योंकि ट्रंप प्रशासन रूस से रिश्ते फिर से जोड़ने की कोशिश कर रहा था। मगर अब बदले हुए माहौल में ट्रंप भी इसके पक्ष में आ गए हैं।
क्या होगा अगर बिल पास हो गया?
अगर यह कानून बनता है तो भारत और चीन को सीधे तौर पर अमेरिका के भारी टैरिफ का सामना करना पड़ेगा। इससे न सिर्फ भारतीय निर्यात प्रभावित होंगे, बल्कि दोनों देशों के साथ अमेरिका के आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों में गंभीर दरार आ सकती है। अमेरिका लंबे समय से भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार रहा है, ऐसे में यह टैरिफ भारत के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।
बिल अगस्त में अमेरिकी संसद में पेश किया जा सकता है। यह रूस पर दबाव बनाने की अमेरिका की नई रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। अमेरिका चाहता है कि रूस आर्थिक दबाव में आकर यूक्रेन के साथ शांति वार्ता शुरू करे, लेकिन भारत और चीन की रूस से तेल खरीद इसे कमजोर कर रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह बिल पास होता है तो वैश्विक व्यापार समीकरणों में बड़ा बदलाव आ सकता है और भारत को भी अपनी ऊर्जा नीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।