हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से ठीक पहले भारत-रूस रक्षा सहयोग को लेकर एक बड़ा कदम सामने आया है। रूसी संसद के निचले सदन ड्यूमा ने 3 दिसंबर को “रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक्स सपोर्ट (RELOS)” समझौते को मंजूरी दे दी। यह समझौता 18 अक्टूबर 2025 को साइन हुआ था। इसके तहत भारत और रूस एक-दूसरे की जमीन पर सैनिकों, युद्धपोतों और सैन्य विमानों की तैनाती कर सकेंगे।
समझौते के अनुसार, दोनों देश 5-5 युद्धपोत, 10-10 सैन्य विमान और 3000-3000 सैनिक एक-दूसरे के देश में 5 साल के लिए तैनात कर सकते हैं, जिसे आगे 5 साल तक बढ़ाया जा सकेगा। यह एग्रीमेंट एयरस्पेस, एयरफील्ड और बंदरगाहों के उपयोग सहित लॉजिस्टिक सपोर्ट को साझा करने की अनुमति देता है। ड्यूमा स्पीकर व्याचेस्लाव वोलोडिन ने कहा कि भारत-रूस संबंध रणनीतिक और दीर्घकालिक हैं, और यह कदम द्विपक्षीय विश्वास को और मजबूत करेगा।
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, यह साझेदारी चीन की आक्रामक गतिविधियों के बीच भारत की सामरिक स्थिति को मजबूत करेगी। समुद्री क्षेत्र में भारतीय नौसेना लगातार इंडो-पैसिफिक के अहम चोक पॉइंट्स पर निगरानी रखती है। ऐसे में रूस का लॉजिस्टिक नेटवर्क भारतीय नौसेना को वैश्विक संचालन क्षमता देने में महत्वपूर्ण साबित होगा। विशेषज्ञ कमोडोर अनिल जय सिंह के अनुसार, मित्र देशों की लॉजिस्टिक सपोर्ट क्षमता भारतीय नौसेना की बहु-मिशन रणनीति को गति देगी।
इंडियन आर्मी के लिए भी यह समझौता बेहद फायदेमंद माना जा रहा है क्योंकि भारत के लगभग 70% हथियार रूसी मूल के हैं—जिनमें सुखोई लड़ाकू विमान, टी-90 टैंक और एस-400 मिसाइल सिस्टम शामिल हैं। रूस के नेटवर्क तक प्रत्यक्ष पहुंच से मेंटेनेंस और सपोर्ट में तेजी आएगी।
दूसरी ओर, यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी दबाव झेल रहे रूस को इस डील से हिंद महासागर तक सैन्य पहुंच बढ़ाने और वैश्विक उपस्थिति मजबूत करने में मदद मिलेगी। यह एशिया में चीन के प्रभाव का संतुलन भी तैयार करेगा।













