हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़ ✑ शुक्रवार 30 मई 2025
कानपुर देहात। मेडिकल कॉलेज के महिला अस्पताल में बुधवार रात एक बेहद दर्दनाक और शर्मनाक घटना सामने आई। प्रसव पीड़ा से कराहती महिला की चीखों को अस्पताल स्टाफ ने नींद में अनसुना कर दिया। नतीजतन, प्रसव के बाद नवजात शिशु बेड के पास रखे डस्टबिन में गिर गया और इलाज के कुछ घंटों बाद उसकी मौत हो गई।
घटना रात लगभग दो बजे की है। रूरा थाना क्षेत्र के प्रेमाधाम कारी-कलवारी निवासी सुनील नायक ने बताया कि उनकी पत्नी सरिता को रात में प्रसव पीड़ा शुरू हुई, जिसके बाद वह उन्हें मेडिकल कॉलेज के महिला अस्पताल लेकर आए। करीब डेढ़ बजे अस्पताल पहुंचने पर स्टाफ ने कुछ दवाइयाँ देकर सरिता को वार्ड में भर्ती कर लिया, लेकिन इसके बाद पूरा स्टाफ सो गया।
रात दो बजे के आसपास जब प्रसव पीड़ा तेज़ हुई, तो सरिता की मां ओमवती ने दो अलग-अलग कमरों में सो रहे कर्मचारियों को जगाने की कोशिश की, लेकिन कोई नहीं उठा। इसी बीच महिला का प्रसव हो गया और नवजात शिशु बेड से गिरकर पास में रखे डस्टबिन में जा गिरा।
ओमवती ने फिर से स्टाफ को जगाने की कोशिश की और उन्हें गिड़गिड़ाकर बताया कि बच्चा डस्टबिन में गिर गया है। तब जाकर स्टाफ हरकत में आया और नवजात को SNCU (विशेष नवजात देखभाल इकाई) में भर्ती कराया गया, लेकिन सुबह करीब 10 बजे नवजात की मौत हो गई।
मामले को दबाने की कोशिश, परिजनों ने पुलिस को दी सूचना
परिजनों का आरोप है कि स्टाफ ने इस पूरे मामले को छुपाने का प्रयास किया। दोपहर करीब दो बजे उन्हें बच्चे का मृत्यु प्रमाणपत्र थमाकर शव ले जाने के लिए कहा गया। इस पर सुनील नायक ने डायल 112 पर फोन कर पुलिस को जानकारी दी। मेडिकल कॉलेज चौकी प्रभारी भागमल सिंह ने मौके पर पहुंचकर मामले की जांच शुरू की।
मेडिकल कॉलेज प्रशासन की ओर से गठित तीन सदस्यीय जांच समिति ने अस्पताल में गंभीर लापरवाही की पुष्टि की है। रिपोर्ट के अनुसार, प्रसव के समय न तो संबंधित डॉक्टर डॉ. रश्मि पाल और न ही स्टाफ नर्स प्रियंका सचान ड्यूटी पर मौजूद थीं। यह एक गंभीर लापरवाही मानी गई है।
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सज्जन लाल वर्मा ने बताया,
“यह अक्षम्य लापरवाही है। जांच समिति ने दोनों के निलंबन की संस्तुति की है, जबकि मैंने शासन को दोनों की बर्खास्तगी के लिए पत्र लिखा है। पूरी जांच रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेजी जा रही है।”
इस हृदयविदारक घटना ने न केवल अस्पताल प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि एक मासूम की मौत की जिम्मेदारी तय करने की मांग को भी हवा दी है। अब देखना यह है कि शासन स्तर पर इस मामले में कितनी तेजी और सख्ती से कार्रवाई होती है।