हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़ ✑ रविवार 25 मई 2025
उत्तर प्रदेश में पुलिस महकमे की शीर्ष पदस्थापना को लेकर एक बार फिर असमंजस और अनिश्चितता की स्थिति बन गई है। मौजूदा कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक (DGP) प्रशांत कुमार, जो 1990 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी हैं, 31 मई 2025 को सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। लेकिन उनके रिटायरमेंट में कुछ ही दिन शेष होने के बावजूद अब तक स्थायी डीजीपी की नियुक्ति को लेकर सरकार की ओर से कोई स्पष्ट कदम नहीं उठाया गया है।
नियमों के मुताबिक, राज्य सरकार को डीजीपी की नियुक्ति के लिए कम से कम तीन योग्य वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के नामों का पैनल संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) को भेजना होता है। इसके बाद UPSC द्वारा चयन समिति की बैठक कर पैनल में से एक नाम को अंतिम रूप दिया जाता है। लेकिन अब तक उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से UPSC को कोई पैनल भेजा ही नहीं गया है। साथ ही चयन समिति का गठन भी नहीं किया गया है। इससे साफ है कि सरकार इस प्रक्रिया को लेकर अभी भी दुविधा में है या अंतिम क्षणों के लिए कोई निर्णय सुरक्षित रखे हुए है।
प्रशांत कुमार को जनवरी 2024 में कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया था, जब पूर्व डीजीपी विजय कुमार की सेवानिवृत्ति के बाद भी स्थायी नियुक्ति नहीं हो सकी थी। तब से अब तक करीब डेढ़ साल बीत चुका है, लेकिन यूपी को स्थायी डीजीपी नहीं मिल पाया है। अब जब प्रशांत कुमार स्वयं सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं, तो एक बार फिर संभावना जताई जा रही है कि सरकार कार्यवाहक डीजीपी के सहारे ही आगे का रास्ता तय करेगी।
सूत्रों के मुताबिक, सरकार ने अनौपचारिक रूप से प्रशांत कुमार के कार्यकाल को बढ़ाने की संभावनाएं तलाशने की कोशिश की है। इसके लिए केंद्र सरकार से संपर्क किया गया, लेकिन अभी तक वहां से कोई स्पष्ट हरी झंडी नहीं मिली है। चूंकि पहले कभी किसी कार्यवाहक डीजीपी को सेवा विस्तार नहीं मिला है, इसलिए संभावना है कि अब किसी नए वरिष्ठ अधिकारी को कार्यवाहक डीजीपी बनाया जाएगा।
वरिष्ठ अधिकारियों के नाम चर्चा में
हालांकि राज्य सरकार की ओर से आधिकारिक तौर पर कोई नाम सामने नहीं आया है, लेकिन सूत्रों की मानें तो कुछ वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी, जो 1989 या 1991 बैच से हैं और वर्तमान में डीजी रैंक पर कार्यरत हैं, चर्चा में हैं। इनमें ऐसे अधिकारी भी शामिल हैं जो लंबे समय से यूपी में प्रशासनिक जिम्मेदारियों को निभा चुके हैं और जिनकी छवि सख्त व अनुशासित अधिकारी के रूप में है।
लगातार कार्यवाहक डीजीपी की व्यवस्था से पुलिस महकमे में एक तरह की अस्थिरता का माहौल बना हुआ है। वरिष्ठ अधिकारियों से लेकर फील्ड स्तर तक के अफसरों में यह सवाल उठ रहा है कि इतने बड़े राज्य में स्थायी डीजीपी की नियुक्ति क्यों नहीं हो पा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि कार्यवाहक व्यवस्था से नेतृत्व में स्पष्टता नहीं होती, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि 31 मई से पहले राज्य सरकार कोई निर्णायक कदम उठाएगी या नहीं। क्या यूपी को लंबे इंतजार के बाद एक स्थायी डीजीपी मिलेगा या फिर कार्यवाहक व्यवस्था का सिलसिला आगे भी जारी रहेगा? यह सवाल केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी अहम बन चुका है।
यदि अंतिम समय तक पैनल नहीं भेजा गया और कोई स्थायी नियुक्ति नहीं हुई, तो यह साफ संकेत होगा कि सरकार इस मसले पर निर्णय टाल रही है, जो राज्य की कानून-व्यवस्था पर भी प्रभाव डाल सकता है।