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स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर उठे सवालों से विभाग में हड़कंप, सीएमओ और विधायकों के बीच विवाद गहराया

हिन्दुस्तान मिरर न्यूज: 13 जुलाई 2025

अलीगढ़ |
स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल स्थिति पर अब राजनीतिक हलकों में उबाल है। अलीगढ़ में सीएमओ और भाजपा विधायकों के बीच विवाद ने तूल पकड़ लिया है। शहर विधायक मुक्ता राजा, इगलास विधायक राजकुमार सहयोगी और कोल विधायक अनिल पाराशर ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शिकायत की है।

विधायकों के सवालों से मचा हड़कंप

विधायकों ने स्वास्थ्य विभाग से जो जानकारियाँ मांगी हैं, वे न केवल विभाग की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करती हैं, बल्कि कई योजनाओं और उपकरणों की उपयोगिता पर भी शक जताती हैं। उनके सवालों में शामिल हैं:

  • एंबुलेंसों की संख्या, अस्पतालवार वितरण, डीजल खपत और संचालन का विवरण
  • सरकारी अस्पतालों में रोज़ाना आने वाले मरीजों की संख्या, मिलने वाला इलाज, रेफर मामलों की जानकारी
  • चिकित्सकों की उपलब्धता, विशेषज्ञों की कमी और उस पर हुई कार्रवाई
  • अस्पतालों में मशीनों की स्थिति, ऑपरेटरों की योग्यता और मशीनों का उपयोग
  • अप्रैल 2024 से अब तक के ऑपरेशन, दवा खरीद-खपत, ब्लड बैंक और रेबीज इंजेक्शन की स्थिति
  • निजी अस्पतालों की सूची व मानक, रेड क्रॉस सोसाइटी का बजट और खर्च का विवरण
  • 2024-25 और 2025-26 के बजट का प्रयोग किन योजनाओं में हुआ, इसकी जानकारी

हेल्थ एटीएम बना सवालों का केंद्र

शहर विधायक ने खास तौर पर हेल्थ एटीएम का मुद्दा उठाया है। स्मार्ट सिटी और सीएसआर फंड से प्राप्त इन एटीएम की वर्तमान स्थिति अस्पष्ट है। कई अस्पतालों में एटीएम का अता-पता नहीं है, जिससे उनके उपयोग को लेकर सवाल उठे हैं।

जेम पोर्टल और डैथ स्टॉक पर भी संदेह

स्वास्थ्य विभाग में जेम पोर्टल से जुड़े पटल पर वर्षों से कोई बदलाव नहीं हुआ है, जिसे लेकर विभाग में चर्चा तेज है। साथ ही डैथ स्टॉक — यानी कंडम सामानों की सूची — में भी गड़बड़ी की आशंका जताई गई है।

नेताओं की मांग

  • मुक्ता राजा (शहर विधायक): स्वास्थ्य विभाग का पांच साल का ऑडिट हो।
  • राजकुमार सहयोगी (इगलास विधायक): जांच रिपोर्ट नहीं मिली तो पुनः मुख्यमंत्री से शिकायत करेंगे।
  • अनिल पाराशर (कोल विधायक): हाल में आए 36 चिकित्सकों की तैनाती में पारदर्शिता होनी चाहिए।


सीएमओ और विधायकों के बीच यह विवाद अब प्रशासनिक स्तर से ऊपर जाकर राजनीतिक मुद्दा बन गया है। स्वास्थ्य सेवाओं की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए उच्चस्तरीय जांच की मांग ज़ोर पकड़ रही है।

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