हिन्दुस्तान मिरर न्यूज़: गुरुवार 19 जून 2025
गोरखपुर/लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा परिषदीय विद्यालयों के विलय की प्रक्रिया तेज़ी से आगे बढ़ रही है, लेकिन इस निर्णय का ज़ोरदार विरोध भी सामने आ रहा है। खासतौर पर गोरखपुर जिले में एक सरकारी विद्यालय के विलय आदेश के बाद शिक्षक संगठनों और प्रतियोगी छात्रों ने मोर्चा खोल दिया है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह कदम ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा।
क्या है सरकार का फैसला?
बेसिक शिक्षा विभाग ने छात्र संख्या कम होने वाले प्राथमिक विद्यालयों को आसपास के स्कूलों में मर्ज करने का निर्णय लिया है। विभाग का तर्क है कि इससे संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा और शिक्षकों की तैनाती प्रभावी ढंग से की जा सकेगी। लेकिन इस फैसले से जुड़े सामाजिक और शैक्षिक प्रभावों को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
शिक्षकों और छात्रों का सड़कों पर विरोध
उत्तर प्रदेशीय जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ और यूपीएसआरए सहित कई शिक्षक संगठनों ने इस फैसले को शिक्षा विरोधी बताते हुए तीखा विरोध दर्ज कराया है। संगठन के प्रांतीय अध्यक्ष संतोष तिवारी और संयुक्त मोर्चा के अन्य प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर निर्णय वापस लेने की मांग की है।
शिक्षक नेता दिलीप चौहान का कहना है कि सरकार ने यह निर्णय बिना किसी व्यापक संवाद और ज़मीनी हकीकत को समझे लिया है। प्रतियोगी छात्रों ने भी इस निर्णय के विरोध में सोशल मीडिया पर #Save_Village_School अभियान शुरू कर दिया है।
निजीकरण और भ्रष्टाचार का आरोप
प्रदर्शनकारी शिक्षकों और छात्रों का आरोप है कि सरकार सरकारी स्कूलों को धीरे-धीरे बंद कर शिक्षा के निजीकरण की ओर बढ़ रही है। इससे समाज का गरीब और वंचित वर्ग गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से दूर हो जाएगा जबकि केवल अमीर तबका ही अच्छी शिक्षा तक पहुंच बना पाएगा।
शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है। ऐसे में बिना पर्याप्त तैयारी और संवाद के कोई भी कदम छात्रों के भविष्य को खतरे में डाल सकता है। यदि विरोध की यह लहर यूं ही जारी रही तो आने वाले दिनों में यह निर्णय राज्य सरकार के लिए एक गंभीर राजनीतिक चुनौती बन सकता है।