अलीगढ़, 22 जुलाई 2025:
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के भाषाविज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष और लिंग्विस्टिक सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, प्रोफेसर एम. जे. वारसी ने केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय में “भाषा और लिंगः एक संक्षिप्त दृष्टिकोण” विषय पर एक विचारोत्तेजक आमंत्रित व्याख्यान दिया। यह व्याख्यान विश्वविद्यालय के भाषाविज्ञान विभाग द्वारा आयोजित किया गया था।

प्रो. वारसी ने अपने व्याख्यान में बताया कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह सामाजिक संरचनाओं और लिंग पहचान को भी आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि शक्ति, भावना, अधिकार या कोमलता जैसे शब्द प्रायः लिंग आधारित अर्थों को छिपाए रखते हैं, जिससे समाज में पारंपरिक लिंग भूमिकाएं और अपेक्षाएं सुदृढ़ होती हैं।
उन्होंने कहा कि 1970 के दशक से अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान और समाज भाषाविज्ञान के क्षेत्र में लिंग को लेकर शोध कार्यों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। प्रारंभिक शोध इस ओर संकेत करते थे कि भाषा में सत्ता का असंतुलन कैसे प्रकट होता है और किस प्रकार महिलाओं की बातों को विशेष ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन समय के साथ शोध का दायरा बढ़ा और अब यह लिंग पहचान, सामाजिक अपेक्षाएं और संवाद की शैली पर केंद्रित हो गया है।
प्रो. वारसी ने प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक रॉबिन लैकोफ के 1975 के अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि महिलाओं की भाषा में शिष्टाचार, प्रश्नसूचक टैग, अनिश्चितता और तीव्रता जैसे गुण अधिक देखने को मिलते हैं। ये विशेषताएं सामाजिक मानदंडों और अपेक्षाओं का प्रतिविम्ब होती हैं।
यह व्याख्यान भाषा और समाज के बीच के संबंधों की गहराई को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास रहा।