नई दिल्ली, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की पहली महिला कुलपति प्रोफेसर नईमा खातून की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर सवाल उठाए हैं। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.बी. अंजारिया की पीठ ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया में हितों का टकराव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। अदालत ने बताया कि प्रो. नईमा खातून का नाम उस पैनल में चुना गया था, जिसकी बैठक में उनके पति प्रो. मोहम्मद गुलरेज भी शामिल थे। उस समय प्रो. गुलरेज एएमयू के कार्यवाहक कुलपति के पद पर कार्यरत थे।
यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने प्रो. मुजफ्फर उरुज रब्बानी और प्रो. फैजान मुस्तफा की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दाखिल अपील पर सुनवाई करते हुए की। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहले ही प्रो. नईमा खातून की कुलपति पद पर नियुक्ति को बरकरार रखा था।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि आदर्श स्थिति में कार्यवाहक कुलपति को इस प्रक्रिया से स्वयं को अलग रखना चाहिए था और मतदान या चयन में भाग नहीं लेना चाहिए था। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के कोलेजियम के मामलों में भी यदि किसी सदस्य से हितों का टकराव जुड़ता है, तो वह खुद को प्रक्रिया से अलग कर लेता है।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी नियुक्तियों की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करती है। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि चयन प्रक्रिया में हितों के टकराव से बचने के लिए सख्त मानक तय करने होंगे, ताकि भविष्य में किसी भी संस्थान की गरिमा पर आंच न आए।
एएमयू में कुलपति पद पर प्रो. नईमा खातून की नियुक्ति ऐतिहासिक मानी गई थी, क्योंकि वह विश्वविद्यालय की पहली महिला कुलपति बनीं। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियों के बाद इस नियुक्ति को लेकर विवाद और गहराने की संभावना है। अदालत आगे की सुनवाई में यह तय करेगी कि नियुक्ति प्रक्रिया कानूनी और संवैधानिक रूप से कितनी वैध थी।