हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
उत्तर प्रदेश में नई श्रम संहिताएं 21 नवंबर से पूरी तरह लागू हो गई हैं। इन नियमों के साथ अब 300 से अधिक श्रमिकों वाले प्रतिष्ठानों को छंटनी या प्रतिष्ठान बंद करने से पहले प्रदेश सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य होगा। यह प्रावधान उद्योगों में पारदर्शिता और श्रमिकों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। साथ ही, हड़ताल से पहले 14 दिन की पूर्व सूचना देना जरूरी होगा। सामूहिक अवकाश को भी हड़ताल की श्रेणी में शामिल कर दिया गया है, जिससे औद्योगिक गतिविधियों पर अनियंत्रित प्रभाव को रोका जा सके।
श्रम मंत्री अनिल राजभर ने लोकभवन में आयोजित प्रेस वार्ता में बताया कि नई श्रम संहिताओं का उद्देश्य श्रम कानूनों के अनुपालन को सरल बनाना और उद्योगों तथा श्रमिकों के बीच संतुलन स्थापित करना है। इसके तहत निरीक्षण व्यवस्था पूरी तरह ऑनलाइन कर दी गई है, जिससे इंस्पेक्टर राज की अवधारणा समाप्त हो जाएगी। पहली बार उल्लंघन की स्थिति में नियोक्ता को अधिकतम जुर्माने के 50% भुगतान पर उपशमन का विकल्प मिलेगा, जिससे अनावश्यक अभियोजन पर लगाम लगेगी और ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ को बढ़ावा मिलेगा।
गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को पहली बार वैधानिक पहचान दी गई है और उन्हें सामाजिक सुरक्षा के दायरे में शामिल किया गया है। इनके कल्याण के लिए विशेष कोष का निर्माण होगा, जिसमें सरकार के साथ एग्रीगेटर्स भी अपने टर्नओवर का एक निश्चित हिस्सा योगदान करेंगे। फिक्स्ड टर्म कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारियों की तरह सभी लाभ प्रदान किए जाएंगे और एक वर्ष की सेवा पर ग्रेच्युटी का अधिकार भी लागू होगा। निजी आवास निर्माण सीमा को बढ़ाकर 50 लाख रुपये करना आम नागरिकों के लिए बड़ी राहत है।
13 पुराने कानूनों को हटाकर एक एकीकृत ढांचा बनाया गया है। सभी प्रतिष्ठानों के लिए श्रमिकों का स्वास्थ्य परीक्षण, ओवरटाइम पर दोगुना वेतन, वेतन कटौती की अधिकतम सीमा 50% और हर कर्मचारी को वेज-स्लिप देना अब अनिवार्य होगा। इसके अलावा, सेवा समाप्ति या इस्तीफे की स्थिति में दो दिनों के भीतर देयों का भुगतान करना जरूरी होगा। उद्योगों और श्रमिकों के बीच विवाद निपटान के लिए शिकायत परितोष समिति, वार्ताकारी परिषद और द्वि-सदस्यीय औद्योगिक अधिकरण का गठन भी किया गया है। नई संहिताओं से श्रम कानूनों की जटिलताओं में उल्लेखनीय कमी आने की उम्मीद है।













