हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
अमेरिका-यूरोप संबंधों में बढ़ता तनाव
अमेरिका और यूरोप के पारंपरिक सहयोगी संबंधों में एक बार फिर दरार गहराती दिख रही है। डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका की नीतियां अब केवल व्यापारिक टैरिफ तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि वीजा पॉलिसी को भी दबाव के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। ताजा फैसले ने यूरोपीय देशों को खुलकर नाराज कर दिया है और इसे दोस्त देशों के बीच विश्वासघात के तौर पर देखा जा रहा है।
वीजा बैन बना टकराव की वजह
वॉशिंगटन ने हाल ही में फ्रांस के पूर्व यूरोपीय संघ (ईयू) कमिश्नर थिएरी ब्रेटन समेत पांच यूरोपीय नागरिकों पर वीजा बैन लगा दिया है। अमेरिका का आरोप है कि ये लोग ऑनलाइन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर रहे हैं और अमेरिकी टेक कंपनियों, खासकर एलन मस्क के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ को निशाना बना रहे हैं। इस कदम को यूरोप ने सीधे-सीधे दबाव की राजनीति करार दिया है।
डिजिटल नीतियों पर टकराव
असल विवाद यूरोप की डिजिटल नीतियों को लेकर है। यूरोपीय संघ बड़े टेक प्लेटफॉर्म्स पर सख्त नियम लागू कर रहा है, ताकि गलत सूचना, नफरत फैलाने वाले कंटेंट और डेटा के दुरुपयोग पर लगाम लगाई जा सके। अमेरिका का मानना है कि ये नियम अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ हैं और अमेरिकी कंपनियों को नुकसान पहुंचाने के लिए बनाए गए हैं।
ट्रंप के तीखे बयान और यूरोप की प्रतिक्रिया
डोनाल्ड ट्रंप पहले भी यूरोप को “अप्रासंगिक” बताते हुए वहां की सरकारों पर लालफीताशाही और सेंसरशिप का आरोप लगा चुके हैं। ताजा वीजा बैन को यूरोपीय नेताओं ने ‘पीठ में छुरा घोंपने’ जैसा कदम बताया है। यूरोप के कई देशों ने एकजुट होकर इस फैसले की निंदा की और इसे डिजिटल क्षेत्र में अमेरिका की दादागिरी करार दिया।
क्या यह डिजिटल विश्व युद्ध की शुरुआत है?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह टकराव केवल वीजा या बयानबाजी तक सीमित नहीं रहेगा। टेक कंपनियों, डेटा सुरक्षा और ऑनलाइन अभिव्यक्ति जैसे मुद्दों पर अमेरिका और यूरोप के बीच खाई और गहरी हो सकती है। मौजूदा हालात को कई लोग दुनिया के नए ‘डिजिटल विश्व युद्ध’ की शुरुआत के रूप में देख रहे हैं।













