हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
चीन अपनी नौसैनिक शक्ति को और मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाने जा रहा है। तीसरा विमानवाहक पोत फुजियान (टाइप-003) अब कमीशनिंग की कगार पर है। इसके शामिल होने के बाद चीन दुनिया की दूसरी ऐसी नौसेना बन जाएगी, जिसके पास दो से अधिक विमानवाहक पोत होंगे। अभी तक चीन लियाओनिंग और शेडोंग का संचालन कर रहा है।
कमीशनिंग की संभावित तारीखें
फुजियान की हालिया यात्रा और समुद्री परीक्षणों को देखते हुए अटकलें लग रही हैं कि इसे तय समय से पहले शामिल किया जा सकता है। चीनी सरकारी प्रसारक सीसीटीवी के अनुसार, यह पोत 18 सितंबर 2025 को नौसेना में शामिल हो सकता है। यह तारीख जापान द्वारा चीन पर आक्रमण की 94वीं वर्षगांठ है। दूसरी तारीख 1 अक्तूबर बताई जा रही है, जो चीन का राष्ट्रीय दिवस है।
अब तक के परीक्षण और तैयारियां
फुजियान पर मई 2024 से लेकर अब तक आठ समुद्री परीक्षण हो चुके हैं। इनमें इसके प्रणोदन तंत्र, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम, डेक ऑपरेशन और विमानों के टेक-ऑफ-लैंडिंग की जांच की गई। सोशल मीडिया पर साझा तस्वीरों में इसके डेक को साफ और तैयार दिखाया गया है। यह चीन का पहला पोत है जिसमें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापल्ट सिस्टम लगाया गया है।
तैनात होने वाले लड़ाकू विमान
चीन ने 3 सितंबर को परेड में ऐसे विमानों का प्रदर्शन किया जो फुजियान से उड़ान भर सकते हैं। इनमें शामिल हैं:
- J-35A स्टील्थ लड़ाकू विमान
- J-15T भारी वाहक लड़ाकू विमान
- J-15DT इलेक्ट्रॉनिक युद्धक विमान
- KJ-600 पूर्व चेतावनी विमान
इन विमानों की मौजूदगी फुजियान को समुद्र में चलता-फिरता एयरबेस बना देगी।
तकनीकी क्षमताएं
फुजियान 320 मीटर लंबा और 78 मीटर चौड़ा है, जिसका ड्राफ्ट 11.5 मीटर है। इसमें तीन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापल्ट, दो विमान लिफ्ट और कई अरेस्टिंग डिवाइस लगे हैं। यह तकनीक इसे अमेरिकी पोत यूएसएस गेराल्ड आर फोर्ड के बाद दुनिया का दूसरा सबसे उन्नत कैरियर बनाती है।
निर्माण की गति और शक्ति का प्रदर्शन
फुजियान का निर्माण 2019 में शुरू हुआ और इसे मात्र छह साल में तैयार कर लिया गया। 17 जून 2022 को इसका लॉन्च हुआ और मई 2024 में समुद्री परीक्षण आरंभ हुए। अमेरिका को अपने फोर्ड क्लास कैरियर को तैयार करने में 16 साल लगे, जबकि चीन ने कम समय में ही इसे तैयार कर दिया।
भारत और हिंद महासागर पर असर
फुजियान को लेकर भारत के लिए भी चिंता बढ़ सकती है। यह पोत लंबी दूरी तक गश्त लगाने और भारी हथियारों से लैस लड़ाकू विमानों को उड़ाने में सक्षम है। हिंद महासागर में इसकी तैनाती चीन को अफ्रीका से लेकर मलेशिया-इंडोनेशिया तक रणनीतिक बढ़त दिला सकती है।