हिन्दुस्तान मिरर न्यूज:
हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश के चार सरकारी मेडिकल कॉलेजों में लागू की गई 79% से अधिक आरक्षण प्रणाली को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताते हुए कहा कि आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती। यह फैसला न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की बेंच ने नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) उम्मीदवार सबरा अहमद की याचिका पर सुनाया।
सबरा अहमद ने NEET-2025 में 523 अंक प्राप्त किए और उनकी ऑल इंडिया रैंक 29,061 रही। उन्होंने याचिका में कहा कि राज्य सरकार ने 2010 से 2015 के बीच जारी आदेशों के माध्यम से अम्बेडकर नगर, कन्नौज, जालौन और सहारनपुर के मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण सीमा को अवैध रूप से बढ़ाया। उनकी दलील थी कि राज्य कोटे की 85 सीटों में से केवल सात सीटें ही अनारक्षित वर्ग को दी जा रही थीं, जो कि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा का सीधा उल्लंघन है।
राज्य सरकार और चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण विभाग ने इसका विरोध किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक इंदिरा साहनी मामले का हवाला देते हुए कहा कि 50% की सीमा निरपेक्ष नहीं है और विशेष परिस्थितियों में इसे बढ़ाया जा सकता है। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार कर दिया और स्पष्ट किया कि आरक्षण की सीमा बढ़ाने के लिए विधिक और संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है।
कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह 2006 के आरक्षण अधिनियम के अनुसार सीटों का पुनः आवंटन करे और यह सुनिश्चित करे कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक न हो। इस निर्णय का असर न केवल इन चार मेडिकल कॉलेजों बल्कि पूरे प्रदेश की आरक्षण नीति पर पड़ सकता है। यह फैसला भविष्य की भर्ती और प्रवेश प्रक्रिया के लिए भी महत्वपूर्ण मिसाल बनेगा।